मैं भी तो इंसान हूँ ,
उन्हीं की तरहां,
जो रहते हैं इस जमीं पर,
और जुटाते हैं कुछ साधन,
खुद को सुखी बनाने के लिए,
अपना नाम कमाने के लिए।
हाँ ,मैं कुछ वैसा नहीं हूँ,
जो जीतने को दुनिया की दौड़,
गिराते हैं पैर मारकर दूसरे को,
जिनका नहीं है कोई कसूर,
या खरीद लेते हैं दौलत से,
इंसान और दुनिया को सच में।
हाँ, मैं ऐसा इंसान हूँ ,
जो चाहता नहीं है कभी,
किसी की बद दुहाएँ,
कामयाब बनने के लिए,
किसी का मकान गिराना,
अपना मकान बनाने के लिए।
डरता हूँ मैं रस्मों-रिवाज से,
करता हूँ शर्म भगवान की,
आ जाते ऑंसू आँखों में,
किसी का रुदन सुनकर,
आ जाती है दया मुझको,
किसी की बर्बादी देखकर।
बेच नहीं पा रहा हूँ अपना धर्म,
बना नहीं पा रहा हूँ अपना महल,
बहा नहीं पा रहा हूँ किसी का खून,
जमीं पर अपना खौफ जमाने के लिए,
बन नहीं पा रहा हूँ मैं कातिल,
क्योंकि मैं डरता हूँ सच में,
इंसानियत और पाप से,
हाँ, मुझको कुछ कहना है।
शिक्षक एवं साहित्यकार-
गुरुदीन वर्मा उर्फ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)