हरकदम साथ चलती अब उसकी छाया
लगता जैसे हरपल वो मेरे अंदर समाया।
इस कठिन सफऱ में जिसने मेरा हाथ थामा
सबसे कीमती बन गया वो मेरा सरमाया।
गुजर उसके बगैर लगती है नामुमकिन
ना जाने किसने मन क़ो इस तरह बनाया।
हक़ीक़त है ये साथ कोई फ़साना नहीं पर
सोचूं ऐसा तो नहीं है मन की कोई माया।
हर राह पर चल रहे है बनकर अब हम साथी
ऐ हमदम इश्क ने भी हमें क्या खूब मिलाया।
सुबह शाम का हर फ़ासला मिट गया है देखो
शायद दिल के जज्बातों ने इतने करीब लाया।
दुआ बस यही की जीवन भर रहे वो हमसफऱ
हासिल खुशियाँ लगती क्यूंकि साथ चलता है हमसाया ।
स्वरचित
शैली भागवत ‘आस’