जीवन में मिला इतना दर्द ।
ढूंढते रह गए हमदर्द।
दर्द इतना था कि भूल गए ।
कि कोई इसे बांट भी सकता है।।
जार जार रोए कि आंसू सूख गए ।
ना मिला फिर भी हम दर्द।।
पोर पोर दर्द से बेहाल ।
पानी भी मिलने का नहीं सवाल।।
छूटा मायका छूटा मां पिता का हाथ।
जिसे समझा हमदर्द वह निकला बेदर्द।।
स्वरचित मौलिक अप्रकाशित सर्वाधिकार सुरक्षित डॉ आशा श्रीवास्तव जबलपुर