हजारों अनाथ बच्चों की बनी थीं जो आई।
महाराष्ट्र में जन्मी थीं वह महिला, नाम था उनका सिंधु ताई।।
चरवाहे के घर में इन्होंने, बेटी स्वरूप था जन्म लिया…
लिंगभेद के कारण घर में, ‘चिंधी’ भी इनको नाम दिया।
वो माता जिसकी कोख से इन्होंने जन्म लिया था…
उसने जीवन के किसी भी पड़ाव पर इनका साथ नहीं दिया था।
पढ़ने की शौकीन थी ताई, मगर नसीब में न थी इनके पढ़ाई…
पिता के सहारे ही, बमुश्किल चौथी कक्षा तक ही पढ़ पाई।
बाल्यावस्था में ही तीन गुनी आयु के व्यक्ति से इनका विवाह करा दिया गया…
जब समझ आई दुनियादारी तब तक तीन बच्चों की मां बना दिया गया।
मजदूरों के हक में इनके द्वारा जब एक आवाज उठाई गई थी…
बेईमान मुखिया ने भड़काया पति को और चरित्रहीनता का आरोप लगाकर घर से निकलवाई गई थी।
नौ मास का गर्भ लेकर अकेले ही घर निकल गईं…
चलने की स्थिति न थी इसलिए उस रात गाय-भैंस के तबेले में ही ठहर गईं।
अर्धचेतन अवस्था में ताई ने एक बेटी को जन्म दिया…
पिता का देहान्त हो गया और मां ने अपने घर रखने से साफ इंकार कर दिया।
नवजात बच्ची को लेकर ताई रेल्वे स्टेशन पर रहने लगीं…
आते-जाते यात्रियों से भीख मांगकर दोनों का पेट भरने लगीं।
बढ़ते अत्याचार देखकर रूह इनकी कांप जाती थी…
इसलिए अपनी और अपनी बेटी की सुरक्षा के लिए श्मशान में रातें गुजारी थी।
अपने इस संघर्ष काल में अनेकों अनाथ बच्चों को देखकर इन्होंने उनकी मदद करने का फैसला लिया…
हजारों बच्चों की मां बनने के लिए खुद की बेटी को भी अनाथालय में गोद दे दिया।
तब से जो भी अनाथ इनके पास आता यह उसकी मां बन जाती थीं…
अनाथ बच्चों के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया इसीलिए यह सबकी ‘माई’ कहलाती थीं।
अहिल्याबाई होलकर और पद्मश्री जैसे अनेक पुरस्कारों से इन्हें सम्मानित किया गया…
सिंधु ताई के जीवन पर आधारित मराठी चित्रपट, लंडन के ५४वें चित्रपट महोत्सव के लिए चुना गया।
हजारों अनाथों को सहारा देकर उनको एक सुखी परिवार दिया…
रोटी, कपड़ा और मकान के अलावा बेहतर शिक्षा का भी उन्हें अधिकार दिया।
सिंधुताई अपने जीवन के संघर्षों को कविताओं में लिखती गईं…
किंतु कल ४जनवरी २०२२अपने हजारों बच्चों को छोड़कर वह स्वयं परमपिता परमेश्वर की शरण में चली गईं।
लेखिका :- रचना राठौर ✍️