स्वर्ण सी चमक
उत्साह में खनक
उमंगों के पंख
उड़ने को आतुर
विश्वास का था वेग
समुद्र सा संवेग
सूर्य की चमकती
किरणों का था तेज
तभी थी पड़ी किसी की नजर
स्वर्ण सी चमक को 
फीकी कर गई किसी की मंशा
उत्साह की खनक को 
किया था हतोत्साहित 
उमंगों के पंखों को
काटने को आतुर
वो लोग सच में
थे कितने शातिर
हक जमा किसी के
सपनों पर अपना
विश्वास को किसी के
बेड़ियों से जकड़ा
जो देश था मेरा
कभी स्वर्ण चिड़िया
उस देश को मेरे
पिंजरे में में कैद किया
मगर वीरों ने लड़कर
सपना साकार किया
ना की प्राणों की चिंता
बलिदान पूरा दिया
छोड़ कर हर मोह को
संसार से उन्होंने
देश की खातिर
अपना हर सपना कुर्बान किया
कविता गौतम…✍️
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