स्वर्ग यहीं है, नर्क यहीं है,
यहीं है सब जीवन के रंग,
सुख में जीवन स्वर्ग सा लगे,
नर्क लगे जब दुख हो संग।
है खटखटा रहा नर्क का द्वार,
मानव स्वयं अपने कुकृत्यों से,
त्याग रहा मात-पिता की छाया,
यह देखकर विधाता भी है दंग।
दौड़ रहा मानव उस पथ पर,
जिस पथ की कोई मंजिल नहीं,
छोड़ दी सुननी मन की आवाज़,
खुद के संग लड़ रहा है जंग।
स्वरचित रचना
रंजना लता
समस्तीपुर, बिहार