क्यों घूमे रे देश विदेश
सुख देगा बस अपना देश
है स्वदेश की बात निराली
फैल जाए मुख पर खुशहाली माटी दे सुगंध देश की
मन भाए इसकी दिवाली
संस्कारों की गंगा बहती
मर्यादा में नारी रहती
मात-पिता की पूजा होती
हर कन्या देवी सी होती
सब हिलमिल त्यौहार मनाते
दो रोटी भी बांट के खाते
पैसे का रुतबा ना चलता
रिश्तो में विश्वास जताते
लिवइनकी कोई जगह नहीं है गठबंधन आधार हमारा
जीवन साथी बन कर जीते एक दूजे का बने सहारा
परिवारों की है परिपाटी
सुख दुख के सब होते साथी संस्कृति है सर्वोच्च हमारी
हम सब हैं बस भारतवासी
धर्म जाति का भेद नहीं है
निज भाषा पर खेद नहीं है सुख-दुख सबके साझे होते
हम सब में कोई भेद नहीं है
चाहे जितने घूमो देश चाहे जितने बदलो वेस
हम तो प्रीति भारतवासी हैं हमको अपना भाता देश
मन से सब हो जाओ स्वदेशी चीजें भी अपनाओ स्वदेशी
भाषा भी अपनाओअपनी
अब तोसब बन जाओ स्वदेशी
प्रीतिमनीष दुबे
मण्डला मप्र