दोहा

नारी जननी जगत की,

देवी का अवतार।

सृजन प्रलय सब नार कर,

रहे विधाता हार।

कविता

ऊपर से देवी मां ने,जब इस भूपर तन धारा।

माता बहिन बेटी बनकर के ये संसार संवारा।

१ नवल नवेली दुल्हन,जब बेटी बन जाती।

साजन के घर जाके, गृह लक्ष्मी कहलाती।

दो परिवारों को है मिलाती, देती सदा सहारा ०.…………

२ प्रिय वर के परिवार को, बेटी है अपनाती।

सबके दुःख सुख बांटकर, घर संसार सजाती।

करती राज दूसरे घर में,बहा प्रेम रस धारा ०…….

३ धन संचय में लक्ष्मी, क्रोधित होकर काली।

बच्चों को पढ़ाने में सरस्वती,घर में रहे खुशहाली।

देवी स्वरूप सदा ही नारी,नर को उदर में धारा ०……

४ देवी रूप में मान कर, कन्या पूजन करते।

ममतामई माता के,स्तन को पान करते।

मां की ममता पाने को बलराम कृष्ण तन धारा ०………

बलराम यादव देवरा छतरपुर

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