कांधे पर बंदूक सजाए करते देश की रखवाली है,
सीमा पे निर्भीक खड़े  ज्यों चमके सूरज सी लाली है।
कर्तव्य पथ पर है अडिग वो सेना के जवान है,
दुश्मनों का करे दलन वो देश की आन,वान, शान है।
पंथ कठिन विश्वास अटल है फिर भी बढ़ते जाते है,
लाखों दुश्मन हो सामने पर तनिक न वो घवराते है।
ईद,दिवाली,होली हो या फिर हो रक्षा बंधन,
फ़र्ज के खातिर सब छोड़ा देश सेवा में अर्पित है तन मन धन।
फौलादी सा सीना है नही किसी से डरते है,
मातृभूमि की रक्षा में अर्पित वो खुद को करते है।
जिस देश में हमने जन्म लिया उस माटी का कर्ज चुकाएंगे,
मन में विश्वास का दीप जला हम अंधियारों से लड़ जाएंगे।
मौत सदा साथ में चलती हाथों में कफ़न तिरंगा है,
भारत माँ के रक्षक तुमको दिल से सलाम हमारा है।
शीला द्विवेदी “अक्षरा”
उत्तर प्रदेश “उरई”
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