कंपनी में टीम लीडर बनाए जाने के बावजूद सॉफ्टवेयर इंजीनियर भव्या बहुत उदास थी। I जिसने भी उसे बधाई दिया.. ये कहते हुए कि तुम्हारी खूबसूरती ने कमाल दिखा दिया। किसी ने उसकी दिन रात की मेहनत को ना देखा.. ना ही प्रशंसा का पात्र समझा। उसे बचपन से लेकर अभी तक की घटनाएं याद आने लगी। विद्यालय में सातवीं में भाषण प्रतियोगिता जीतने पर भी सबने एक सुर में यही कहा.. है ही इतनी सुन्दर… आँखें चौंधिया जाए.. किसी और की बातों पर ध्यान ही ना जाए ऐसे में। कितनी मायूस हो गई थी वो.. उस समय भी उसने भाषण के लिए जाने कहाँ कहाँ से सूचना एकत्रित किया था। बारहवीं में भी चित्र बनाने और उसका वर्णन करने के लिए जब उसे जिला में प्रथम पुरस्कार मिला.. तब भी सबने यही कहा.. इसकी सुंदरता के सामने कुछ और दिखता कहाँ है। उसके पापा ने अगर कदम कदम पर उसे सम्भाला ना होता तो उसका मनोबल कब का टूट गया होता। अगर वो सुन्दर है तो उसकी गलती क्या है.. क्या सुन्दर होने पर बुद्धि खत्म हो जाती है… क्या सुन्दर तन में सुन्दर मन नहीं हो सकता है ..क्या सुन्दर इंसान मेहनती नहीं हो सकते हैं। सुन्दरता या कुरूपता बुद्धि, मेहनत या विनम्रता नापने का पैमाना कैसे है… फिर बुद्धि बनाम सुन्दरता क्यूँ… अपनी गाड़ी ड्राइव करती ऑफिस से बुझे मन से घर लौटती भव्या सोच रही थी।
समाज ने भौतिक स्तर पर चाहे जितनी भी तरक्की किया हो .. लेकिन मानसिक स्तर की उन्नति होनी अभी बाकी है.. तुम्हें अगर स्वयं को साबित करना है.. तो बिटिया कुछ ना कुछ अलग करना है..भव्या के पिता उसे समझाते हुए कहते हैं।
क्या करूँ मैं.. इसी उधेरबुन में भव्या की सारी रात निकल गई।
ऑफिस में एक कोरे कागज पर पेंसिल चलाती भव्या की आँखें चमक उठी.. टेक्सटाइल कंपनी… हाँ मेरी खुद की टेक्सटाइल कंपनी होगी.. अपने दम पर खड़ी करुँगी।
पर तुम्हें इसका कोई ज्ञान नहीं है..दूर दूर तक ये तुम्हारे अधिकार क्षेत्र में नहीं आता है…भव्या की माँ चिंतित हो उठी थी।
छोटे से शुरू करुँगी.. मेहनत करुँगी.. सीख जाऊँगी..पहले हम छोटे बाजार के लिए माल तैयार करेंगे…. फिर आगे देखेंगे… क्यूँकि ब्रांड तो कई हैं..जिसके कपड़े अच्छे, मजबूत और सुविधाजनक होते हैं.. लेकिन हर कोई उसे ले सके.. ये नहीं हो पाता है। मैंने सोचा है कम क़ीमत पर ऐसे कपड़े उपलब्ध कराऊँ… फिर आप दोनों साथ हैं ना.. हो जाएगा.. भव्या के चेहरे पर दृढ़ता झलक रही थी।
अपनी सारी जमा पूँजी लगा कर बाजार की स्थिति जानकर छोटे छोटे व्यवसायी से सम्पर्क कर मशीनें मँगवा भव्या कुछ कारीगरों के साथ काम शुरू कर देती है। कपड़ों की पहचान में उसकी माँ हमेशा उसके साथ होती है। कंप्युटर और एनालिटिकल स्किलस खुद भव्या ने सम्भाल लिया और कम्युनिकेशन के लिए उसके पापा उसकी सहायता करने लगे। कम कीमत पर ब्रांड जैसे कपड़े.. बाजार ने साथ ही और उपभोक्ताओं ने भव्या टेक्सटाइल कंपनी को हाथों हाथ लिया। देखते देखते भव्या टेक्सटाइल कंपनी खुद एक ब्रांड बन कर उभरी .. लेकिन भव्या ने छोटे व्यवसायी और उपभोक्ताओं को ध्यान में रखते हुए क्वालिटी से बिना समझौता किए कीमत आम आदमी के पहुँच तक ही रखी है।
आज भव्या को उभरते व्यवसायी का सम्मान लेने बुलाया गया है। आज भी उसकी सुन्दरता से सबकी आँखें चौंधिया रही है। समाचार पत्र में हर तरफ उसकी मेहनत की चर्चा हो रही है…उसकी सुन्दरता की कोई बात नहीं है। सुन्दरता या कुरूपता किसी के व्यवहार को नापने का पैमाना नहीं हो सकता है.. भव्या ये साबित करने में कामयाब हो गई… जिसकी चमक भव्या के चेहरे पर बखूबी देखी जा सकती है।
आरती झा(स्वरचित व मौलिक)
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