सुना है तुम्हारा शहर आज कल ,हर दिन थोड़ा संवरने लगा है।
झिलमिल सितारों की झालर लगी है, चांद ज़मीं पर उतरने लगा है।
नये बाग,उद्यान कुछ पंछी नए हैं, क्या गुलमोहर के वह पेड़ लगे हैं ?
उकेरा था कभी जिसपर नाम मेरा, क्या नाम मेरा अब भरने लगा है ।
सुना है…………
आ ही जाऊंगी शहर में कभी बनकर मुसाफिर , क्या तू मुझे पहचान लेगा
या मेरे आने खबर सुनकर , जमाने भर की रूस्वाई से डरने लगा है ।
सुना है………..
मेरी यादों को कहीं दफनाया तो होगा, गैरों में मुझे भी बताया तो होगा।
मैं न जी पा रहीं हूं तेरी याद में, तू किसी और पर अब तो मरने लगा है।
सुना है……..
तुझे छू कर आई पुरवइया ने चुमा, गुजरे जमाने में फिर दिल ये झूमा ।
एक सिहरन उठी है मेरे तन बदन में,गजरा जुड़े का मेरे बिखरने लगा है।
सुना है……..
आसान नहीं होता है जिस्म ढोना,जान किसी और के पास होना
सोचती हूं कभी मैं भुला दूं जमाना ,मन मेरा बगावत करने लगा है।
सुना है………
स्वरचित ; पिंकी मिश्रा…✍️
भागलपुर बिहार।