अपनों ने जिन्हें कर दिया था बेसहारा
वो सिंधु ताई बनीं बेसहारों का सहारा
कच्ची उम्र में ब्याह दी गईं उम्रदराज से
बहकावे में उसने निष्कासित किया घरबार से
अपने हक की खातिर थी आवाज उठाई
बहकावे में आकर पति ने बाहर की राह दिखाई
नौ माह की गर्भवती तबेले में थी बेटी जाई थी
सहारा लेने को वो माँ के घर पर आईं थी
वहाँ भी नहीं मिला सहारा ,जिसकी उसको जरूरत थी
अंतरात्मा से आवाज है आई अब वो बनेगी जरूरत किसी की
स्टेशन पर भीख मांगकर,दोनों का पेट भरी थी
हिम्मत नहीं हारी ,आत्मरक्षा को श्मशान में सोती थीं
धीरे धीरे अनाथों की बन गईं वो माई
भीख माँगकर ही उनका पेट भर पाई
औरों को ममता देने की खातिर अपनी ममता का त्याग किया
निर्बल का बन कर सहारा उनको जीवन दान दिया
सबका हित करने वाली माँ की ख्याति फैल गई
सिंधु ताई के नाम से वो लोकप्रिय होती गई
हक दिलवाने की खातिर जी जान लगा देती थी
न जाने कितनों के घर भी वो बसा देती थीं
बहुत पाया है सम्मान उन्होंने हैं वो इसकी हकदार
कमजोर कभीं बनना जग में,सीख ये सबको सिखाई
देश विदेश हर जगह पर मिला इन्हें सम्मान
आज न जाने कितने बेटे बेटियों की बन गई माँ
पढा लिखाकर उन्हें भी दिलवाया है सम्मान
बस खुद का कर्तव्य मान ,करती रही वो अपना काम
वो ऐसी खुशबू हैं जिनकी महक हर दिशाओं में फैली है
कौन कह सकता है उन्होंने किती यातनाएं झेली हैं
हम छोटी सी भी बात का रोना रोने बैठ जाते हैं
गर किसी एक चेहरे पर भी ला सकें मुस्कान तोजीवन सफल बना सकें…
                           नेहा शर्मा
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