कुछ आखें जो कभी सोई नहीं
बचपन की मासूमियत जिसे बोई नहीं
हर कस्बे, हर कोने में रोते हुए वो अनाथ
किलकारियों की जगह भीख मांगने लगे नन्हे हाथ
आपने अम्बर थामा था, 
सागर को भी रोक लिया 
जो विपत्ति आयी  रास्ते में , 
सबका मुँह मोड़ दिया 
गरीबी में आटा गीला , 
इस मुहवारे को भी झुठला दिया
पति ने ठुकराया तो , 
आपने ममता का झरना  बहा दिया।  
    
गया के बीच बेहोसी में , 
बच्चे को जन्म दिया आपने 
वक़्त ने लात मारी तो , 
जानवरो ने प्यार दिया
16 पत्थर मार कर नाल तोड़ी थी 
रेल की पटरी पे बैठ कर , जीवन जीने की उमंग जगायी थी
शमशान की चिता पे रोटी बनाकर खायी थी 
अंधकार में भी रौशनी की चिंगारी जलाई थी
चार राष्ट्रपति के हाथ से अवार्ड पाये 
बुझते हुए दीप में भी जीने की चाह जगायी थी
आज दुनिया आपकी गाथा सुनाती है 
आपके आगे सर झुकाती है 
क्यूंकि मुश्किलो के आगे घुटने टेक कर नही
बल्कि दीपक की लौ से अंधकार मिटाया आपने
रंजना झा
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