सम्पूर्ण जगत माया के वशीभूत है,पशु पक्षी ,मनुष्य सभी अपने बच्चे अपने परिवार के सुख सुविधा के प्रति कटिबद्ध होते हैं।
अगर कोई स्त्री अपने बच्चे को अनाथाश्रम में भेज कई अनाथ बच्चों पर अपने वात्सल्य की वर्षा करे उनका भविष्य संभाले तो उस स्त्री को आप क्या कहेंगे?
आपमें से शायद ज्यादातर लोगों के जेहन में एक ही बात आयेगी , कि कैसे वे खुद के बच्चे के प्रति उदासीन हो सकती हैं,जिसे संभालना उनकी अपनी जिम्मेदारी थी।
तो आइए जानते हैं उस महिला को जो 1400 बच्चों की मां बनी।
14 नवंबर 1948 में महाराष्ट्र के वर्धा जिले के एक गांव में एक बच्ची का जन्म हुआ। उस समय लड़कियों का जन्म लेना अच्छा नहीं माना जाता था।उनका नाम रखा गया चिंदी(कपड़ों की कतरन)।
मवेशी चराना परिवार का पेशा था।उसे स्कूल जाने का बड़ा शौक था,पिता ने किसी तरह स्कूल में दाखिला करा दिया ,पर मां नहीं चाहती थी इसलिए जल्दी ही उसकी शादी उससे बड़े उम्र के लड़के से कर दी गई।
चिंदी से सिंधु ताई बनने के सफर तय करने के बीच अत्यंत संघर्ष था।
शादी के समय उनकी उम्र महज 10 साल की थी ,वो सही मायने में शादी के मतलब को भी नही जानती थी।
उसे कविताएं लिखने ,पढ़ने का बहुत शौक था,लेकिन पति उसे पढ़ते देखता तो बहुत मारता इससे डर वह कविताएं मुंह में चबा जाती ,या चूहे के बिल में डाल देती।एक बार नेवला बिल में उनका कागज ले गया ,जिसे निकालने के चक्कर में नेवले और उनकी लड़ाई भी हो गई।
20 साल की उम्र में उन्होंने मजदूरी नहीं मिलने के विरोध में धरना प्रदर्शन किया ,ये बात उस गांव के जमींदार को नागवार लगी ,उसने उनके पति को अपना और चिंदी के अवैध संबंध बता उसे घर से निकलवा दिया।
पति ने 9 महीने के गर्भ पर लात मार कर उसे तबेले में फेंक दिया।
वे बेहोश हो गईं ,और वहीं तबेले में एक बच्ची को जन्म दिया ।भ्रूण नाल भी खुद से ईंटें से काटा।
असहाय ,किस्मत की मारी उन्हें मायके में भी ठिकाना नहीं मिला ,भला उनके ऊपर बदचलन का तमका जो लग गया था।
वो जीने के लिए स्टेशन पर गाना गाती हुई भीख मांगती,शमशान में जाकर वहां फेंके कपड़े पहनती,और वहां शव पर पड़े आटे की लोई की रोटियां सेंक अपना और अपनी बच्ची का पेट भरती।
यूं ही स्टेशन पर उन्हें कई अनाथ बच्चे मिलते गए।कुछ आदिवासियों ने उनके लिए घर बना कर दे दिया। वो उन बच्चों के लिए पढ़ने का प्रबंध करती।उन्हें लगा कहीं उनके अंदर की मां अपनी बच्ची के लिए कमजोर न हो जाये और वो अन्य बच्चो के साथ अन्याय न हो जाए।
उन्होंने अपनी बच्ची को एक अन्य अनाथाश्रम में छोड़ दिया।
उनका संघर्ष रंग लाया ,कई संस्थाओं ने उन्हें खुले हाथों से दान दिया।
आज उनके बच्चे ,टीचर, नर्स,डॉक्टर ,वकील बन गए है।सिंधु ताई एक मामतमयी अंतराष्ट्रीय स्तर पर पहचानी जाती हैं।उन्हें कई अवार्ड ,राष्ट्रपति से लेकर अन्य संस्थाओं द्वारा मिल चुके।
उनके जीवन में एक ऐसा अवसर भी आया जब उनके पति उनके पास आए ,तब सिंधु ताई ने कहा _मैने तुम्हें माफ किया लेकिन अब तुम मेरे पति की हैसियत से नहीं मेरे बेटे की तरह आ सकते हो।
धन्य है ऐसी मां ,जिसने अपने मातृत्व की छाया हर अनाथ को दिया।
4 जनवरी 2022 को सिंधु ताई बीमारी से लड़ते लड़ते दुनिया से कूच कर गईं।