“सास” वो मां है जिसने जन्म तो नहीं दिया पर अपना कहने का अधिकार दिया। एक नया घर और परिवार दिया। हां यह बात ओर है कि नाम से ही बदनाम है वो है “सासू मां”!दो पक्षों को एक साथ सासू मां मिलती है वर वधू दोनों को। दोनों के ही मन भावनाओं से ओत-प्रोत होते हैं। समय बितता है और उसके साथ ही एक के मन में सासू मां की छबि धूमिल होती चली जाती है और दूसरे के मन पर सासू मां के प्रति एक सम्मान की छाप और गहरी हो जाती है।ज़ाहिर सी बात है ख़ातिरदारी करे वो दामाद की सास और जो पूरा परिवार सौंप दे वो होती है एक बहू की सास। क्यों दामाद को सास अच्छी लगती है और बहू को नहीं ??
बहुत अंतर है दामाद की सास में और बहू की सास में ! हम यहां चर्चा करेंगे बहू की सास की जो नाम से ही बदनाम है।गोद में नहीं खिलाया उसने पर बेटे का हाथ में दिया जिसने ।बाहों के झुले में नहीं झुलाया उसने पराईजाई को हां मगर पोते-पोती को स्नेह के हिंडोले में झुलाती रही।
“नज़र ना लगे मेरे लाल को” कहकर बलैया लेती रही। बहू को लाड दिया नहीं कभी पर टोका टोकी करते हुए गलतियां उसकी सुधारती रही ।
सासू मां की लाडली ना बन सकी चाहे गांव भर में उसी का बखान किया।”म्हारी बहू घणी चोक्खी से “कहकर सदैव गुणगान किया।
हां ख़ुश किस्मत हैं वो औरतें जिन्हें दो मांओं का प्यार मिला।भाग्य उनके भी कम नहीं जिन्हें सिर पर सासू मां का हाथ मिला।
असल में सासू वो मां है जो आपके अंदर छुपा खरा सोना तपा कर बाहर लाने का कार्य करती है। शायद कभी प्रेम वश समय की कमी के चलते या फिर लाड में मां ने नहीं सिखाया वो भी सासू मां दृढ़ता के साथ सिखाती है। इसलिए तो सासू मां अपनी बहू की एक भी गलती पास नहीं होने देती। यही कारण है कि सासू मां की शिष्टता के कारण ही तो बहुएं बखानी जाती हैं।
दोस्तों ये लेख मैंने अपनी मां से प्रेरित होकर लिखना शुरू किया लेकिन अंत तक आते आते इसमें मुझे सासू मां की झलक महसूस हुई और मैं कृतज्ञता व्यक्त करती हूं दोनों के प्रति क्योंकि आज मैं जो भी हूं उनके मेरी जिंदगी में एक शिक्षक की भूमिका के कारण ही हूं।
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आपकी अपनी ( Deep )