सावित्रीबाई नाम नहींं, सच में ही सावित्री थी।
कर्म ऐसा किया इन्होंने जग में मान बढ़ाई थी।
थी शिक्षिका हर एक को शिक्षित करती थी
पीड़ित और महिलाओं की मानो ये वरदान थी।
करती थी वीरों की प्रशंसा हो निडर संग्राम में,
भेंदती शब्दों के बाण से अंग्रेजों का सीना थी।
किससे है कैसे लड़ना मूल मंत्र को जान गई थी।
अंग्रेजों की नियत को पल भर में पहचान गई थी।।
आड़े आई अंग्रेज़ी भाषा जिसे समझ न पाते लोग
अंग्रेजी जन-जन तक पहुंचाने का संकल्प लिया।
नारी को नारी की शक्ति पीड़ित को देती हौसला।
मार्ग प्रशस्त करने का फिर लिया इन्होंने फैसला।।
शब्दों के लेखन में फिर धार इन्होंने तेज की।
कलम को हथियार बना जन-जन तक संदेश दी।
अंग्रेजों को अंग्रेजी भाषा से ललकार उठी
शब्दों के तीखे बाणों से हरने भू का भार उठी।
सावित्रीबाई नाम नहींं, सच में ही सावित्री थी।
कर्म अपना इतिहास के पन्नों में दर्ज कराई थी।।”
    अम्बिका झा ✍️
कांदिवली मुंबई महाराष्ट्र
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