वो रुक्मिणी थी तेरी जो संग तेरे चली गईं,
मैं राधा थी तेरी में ठगी सी रह गई।
उसके प्रेम पत्र पर तुम दौड़े चले आए,
मेरे तो आंसुओं पर भी तनिक न रिझाए।
मैं तेरी राधा बनी ही रहना चाहती हूँ,
रुक्मिणी के संग तो जामवंती, सत्यभामा भी पाती हूँ
रुक्मिणी संग रहकर भी संग नही थी,
राधा संग न रहकर भी संग ही थी।
प्रीत तुझको, मुझसे राधा सी हो,
साथ हो ना हो पर साथ हो।
गरिमा राकेश गौत्तम
कोटा राजस्थान