थोड़ी गर्मी, थोड़ी सर्दी, थोड़ी बारिश है,
मौसमों ने मिलकर रचाई नई साजिश है।
खुशियों में ना सही गमों में गले लगाना,
ज़माने से रही बस इतनी ही गुजारिश है।
कामयाबी हमारे हिस्से एक दिन आएगी,
हमें अब तलक जिन्दा रखे ये ख़्वाहिश है।
महफूज़ है हम अपने दायरों में रहकर,
रब ने हम तक पहुंचाई इतनी
नवाजिश है।
अपने परायों से झेल रहे कड़वाहट क्यूंकि,
मेरी तहजीब में शामिल मेरी परवरिश है।
स्वरचित
शैली भागवत ‘आस’