आज रश्मिरथी ने दैनिक लेखन का विषय दिया है ‘सांच को आंच कहाँ ‘ वैसे मुहावरे के रूप में तो ‘सांच को आंच नहीं’ प्रयुक्त होता है किन्तु दोंनो वाक्यांश का अर्थ एक ही होगा। अतः चलिए आज इसी विषय पर अपने विचार प्रस्तुत करती हूँ, आशा ही नहीं मुझे विश्वास है कि आप भी मेरे विचार से सहमत होंगे।
हम सभी जानते हैं कि सांच को कभी आंच नहीं
होती अगर कोई इंसान अपने
जीवन में सत्य के मार्ग पर चलता है तो उसे कुछ समय तक अवश्य मुश्किलों का सामना करना पड़ता है लेकिन अंत में उसके जीवन से मुसीबतें हमेशा के लिए दूर हो जाती हैं, क्योंकि सांच को कभी किसी प्रकार का भय/आंच नहीं होती।
सत्य सर्वत्र विजयी होता है- यह वह शाश्वत सत्य है, जो देश-काल की हर कसौटी पर खरा उतरा है। इतिहास साक्षी है कि असत्य जब-जब हावी हुआ है तब-तब अंततः उसे पराजय का मुँह देखना पड़ा है। पौराणिक युग के चाहे वे रावण, कंस या कौरव हों अथवा इतिहास के हिटलर, मुसोलिनी या चंगेज़ खान। असत्य पर टिका अंग्रेज़ी-साम्राज्य, जिसके लिए कहा जाता था कि उसका ‘सूर्य अस्त नहीं होता’-उसे भी अपना बोरिया-बिस्तर समेटना ही पड़ा। हाँ, यह भी सत्य है कि सत्य की संस्थापना का मार्ग कंटकाकीर्ण होता है। यह आग का दरिया है, जिसमें डूब के जाना होता है। स्वर्ण को भी तो कुंदन बनने के लिए आग में तपना होता है। कोयले को हीरा बनने के लिए वर्षों-वर्ष ताप और दबाव सहना होता है। सत्य का चाबुक ऐसा होता है जिसके सामने मिथ्या का दर्प टिक ही नहीं पाता है। भ्रष्ट तरीके अपनाकर व्यक्ति धनी भले ही बन जाए परन्तु सुख-शांति कभी नहीं पा सकता है। सच व्यक्ति को इतना निर्भय और आत्मबली बना देता है कि बड़ी-से-बड़ी कठिनाई, अवरोध, आलोचना उसे अपने पथ से विचलित नहीं कर पाती है। दुनिया के हर धर्म का आधार-सत्य है, क्योंकि मानवता का अस्तित्व ही सत्य पर टिका हुआ है। कभी भी,कहीं भी और कोई भी इस सुदृढ़ तथ्य की आजमाइश करके अपने मन के वहम को दूर कर सकता है।
हमारा स्वर्णिम इतिहास और वर्तमान बल्कि अखिल विश्व भी इस बात का सदैव साक्षी रहा है और सदा ही रहेगा।
धन्यवाद!
लेखिका-
सुषमा श्रीवास्तव
उत्तराखंड।