आज जिनके जीवन पर मैं रौशनी डालने की कोशिश कर रहा हूं वो सावित्री बाई फूले हैं। जो लड़कियां आज़ादी की बात करती हैं, जो युवा, युवती खुले आसमान की वकालत करते हैं। वह गहरी आंखों से सावित्रीबाई फूले को देख ले, पढ़ ले और अपनी उम्मीद और ख्वाहिश को ज़मीन दें।
जब वो चलती थीं तो लोग उनपर गोबर फेंकते। कूड़ा फेंकते। पत्थर फेंकते। वो बगल में एक अदद दूसरी साड़ी दबाए आगे बढ़ जाती। उनकी उम्मीद और मेहनत इन पत्थरों के ज़ख्म, कूड़े और गोबर की गंदगी से कहीं ज्यादा बड़ी थी।
उन्होंने लड़कियों का पहला स्कूल खोला और खुद पहली महिला शिक्षिका होने का जिम्मा भी उठाया। उन्होंने कलम उठाकर मराठा ज़मीन पर कविता उकेरी और हिम्मत देकर लड़कियों को कलम पकड़ाई। यह वो पहली औरत हैं जिसके सामने हाथ में पत्थर लिए मर्द औरते झुकती चली गईं।
लोग सावित्रीबाई के पैरों में कांटे बो रहे थे, और वो उनकी नस्लों के पांव के कांटे चुन रही थीं। कम से कम आज हमसब को उनपर फेंकी गई गंदगी को महसूस करना चाहिए। सावित्री बाई का आंचल हमसब को महका देगा। आज उनको रोज़ से ज़्यादा याद करें।
जिस देश में एकलव्य का अंगूठा गुरु दक्षिणा में मांगने वाले के नाम पर पुरस्कार दिए जाते हो, जिस देश में शम्बूक जैसे विद्वान के वध की परंपरा हो, जिस देश में शूद्रों-अति शूद्रों और स्त्रियों को शिक्षा ग्रहण करने पर यहां के धर्मग्रंथों द्वारा उनके कान में पिघला शीशा डालने का फरमान जारी किया गया हो।
जिस देश के ब्राह्मणवादी कवि द्वारा यहां की दलित शोषित-वंचित जनता को “ढोल गंवार शूद्र अरु नारी यह सब ताड़न के अधिकारी” माना गया हो ऐसे देश में किसी दलित समाज की स्त्री द्वारा इन सारे अपमानों, बाधाओं, सड़े-गले धार्मिक अंधविश्वास व रुढियां तोड़कर निर्भयता और बहादुरी से घर-घर, गली-गली घूमकर सम्पूर्ण स्त्री व दलित समाज के लिए शिक्षा की क्रांतिज्योति जला देना अपने आप में विश्व के किसी सातवें आश्चर्य से कम नहीं था।
एक शिक्षित नारी अपने परिवार के साथ सामाज का भी उद्धार करती है। हमारा आज के पोस्ट में जो कि नारी शक्ति पर कविता का लिखने का यही मकसद है कि समाज में नारी को कमज़ोर नही समझना चाहिए और साथ ही साथ बेटी हो या महिला नारी के साथ दुष्कर्म नही करना चाहिए। उन्हें हम कविता के माध्यम से प्रोत्साहित कर सकते हैं। इसीलिए आज यहां पर उनके जीवन पर सुंदर कविता प्रस्तुत किया हु सायद आप सभी को पसंद आए,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
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मानवता है हमें सिखाती नारी का सम्मान करो
ये श्रष्टि की जननी है मत इसका अपमान करो
जन्म हमें देकर नारी माँ का फर्ज निभाती है
रूप बहन का लेकर नारी भाई हमें बनाती है
पत्नी बनकर घर में आये घर
को स्वर्ग बना देती
जो बेटी का रूप रखे तो सोये भाग्य जगा देती
हर मजहब सिखलाता है कम
से कम इन्सान बनो
मानवता है हमें सिखाती नारी
का सम्मान करो
है शर्म हया का पर्दा भी क्योंकि नारी हिन्दुस्तानी है
पर मत समझो नारी को अबला ये सावित्रि बाई फुले है
जब तक पर्दे में है तब तक ही ये नारी है
जब दुष्टों का संहार करे तो ये ही दुर्गा काली है
ब्रह्मा विष्णु शिव शंकर ने भी नारी को सम्मान दिया
जाने क्यों इस मानव ने ही नारी का अपमान किया
जो भी पाप कमाये तूमने उन पापों का उद्धार करो
मानवता है हमें सिखाती नारी का सम्मान करो
आज जमाना बदल चुका है हर विभाग में नारी है
पुरूषों के संग कदम मिलाकर चलती अब नारी है
स्कूटर से लेकर नारी हवाई जहाज तक उड़ा रही
खेलों के मैदान में जाकर कैसे कैसे करतब दिखा रही
देश को मेडल दिलवाकर देश का मान भी बढ़ा रहीं
सेना में भर्ती होकर अपनी जान की बाजी लगा रहीं
ऐसी नारी को यारो सौ सौ बार प्रणाम करो
मानवता है हमें सिखाती नारी का सम्मान करो,,,,,,,,,,,,,,,,,,,, 💐💐💐स्वरचित
🌹🌻✍️प्रितम वर्मा✍️✍️✍️✍️🌻🌹🌻🌹🌻🌹🌻🌹🌻