रेगिस्तान की तपती रेत,में एक बुढ़िया अपनी झुकी हुई कमर और कपकपाते हाथो में लाठी टेकते हुए चली आ रही थी,,
ये सिलसिला उसका आज से नही पिछले पैसठ सालो से चला आ रहा था,,
क्या गर्मी क्या बारिश ,और क्या ही तूफान उसे कभी कोई रोक नही पाया था,,,,मानो उसके आगे सब नमस्तक हो गए थे।।,,,,,,,
शन्नो धीरे धीरे चल कर सामने कटीले तारो से बने बाउंड्री के पास आकर  खड़ी हो जाती,,,,देखने मे  ये बाउंड्री कोई आम सी लगती जो अमूमन लोगो के घरों के आस- पास बनाई जाती है,,,
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लेक़िन  ये आम सी दिखने वाली बाउंड्री दो देशों को बांटने का काम करती है,,,,, शन्नो रोज तपती दोपहरी में आकर बॉर्डर से कुछ दूर पर आकर खड़ी हो जाती और एक टक अपनी डबडबाई आँखो से , बार्डर के उस पार देखने लगती
,, अब तो कोई फ़ौजी भी उसे न रोकता और न टोकता था,,,, 
वह बावरी बुढ़िया घण्टो बैठकर बॉर्डर के उस पार देखती,,, दोनो देशों के सैनिको की भी आंखे नम हो जाती ,,,शन्नो की दशा देखकर,, लेकिन वो भी क्या कर सकते थे,,,वो तो बस अपना फ़र्ज़ निभा रहे थे,,,अपने  देश की सुरक्षा करके,,,,
ये जगह  शन्नो  लिए किसी मंदिर से कम न थी,,,,, शन्नो धीरे धीरे झुककर अपना सीस नवा देती और चुटकी भर रेत उठाकर अपनी माँग में भर लेती है,,,,,आज भी उसके कांपते हुए हाथ अपनी माँग सजा रहे थे,,,, बॉर्डर पर खड़े सैनिको का दिल भी गमगीन था,,  शन्नो की इबादत देखकर
राजस्थानी पारंपरिक पोशाक पहने  हाथो में भरी भरी चूड़ियां ,,बाजूओ पर बधा बाजूबंद माथे पर भोर नाक में नथ,,,, हथेली पर रची मेहँदी,,, उम्र के इस ढलान पर भी बहुत सुंदर लग रही थी,,,,,, उसकी जिंदगी के पैसठ साल बीत गए अपने महबूब के इंतजार में ।।,,,,,
सोलह साल की शन्नो की शादी रूप सिंह से तय हई थी,,,, रूप सिंह इक्कीस साल का बाँका नौजवान था,,,, राजस्थान के छोटे से गाँव चुरू का रहने वाला,,, दो भाइयो में रूप सबसे बड़ा था,
, रूप और परिवार की गिनती गाँव के रहीसो में की जाती थी,,,, उस जमाने मे लोगो की समृद्धि का अंदाजा रूपया पैसा से नहीं बल्कि उनके पास जानवरों की संख्या पर की जाती थी ,,  जिस व्यक्ति के जितने जानवर होंते थे वह व्यक्ति उतना ही रहीस माना जाता था,,,,
रूप सिंह भी उन्ही लोगो मे आता था,,,खेती बाड़ी के काम मे निपुड रूप सिंह अक्सर शाम को भेड़ें चराने निकल जाता ,,, कई बार उसकी माँ मना करती लेकिन रूप नही मानता था,
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इसी बीच रूप का ब्याह शन्नो से तय हो गया,,,, जब शन्नो के बापू ने शन्नो की ब्लैक एंड वाइट तस्वीर भवरी  बाई को दिखाई जो शायद किसी मेले में खिंची गयी थी ,,,,  शन्नो की सुंदरता नेसब के मन को मोह लिया घणी चोखी, छोरी है,,,, मारे रूप के साथ खूब जचेगी,,, भवरी बाई ने रूप के बापू सा से कहा…..
तभी  सबसे बचते बचाते रुप ने भी शन्नो की तस्वीर देख ली,,,और तब से मासूम शन्नो की छवि रूप के मन में बस गयी,,, अक्सर रातों को शन्नो के साथ न जाने उसने कितने सपने बुन  डाले,,,,
ऐसे ही शादी की तैयारियों में कुछ दिन गए,,,, 
अब रूप की शादी में बस तीन ही दिन शेष थे ,,, इसलिए आज उसकी माँ ने उसे भेड़ो को बाहर ले जाने से मना कर दिया,,,,, लेकिन रूप कहा मानने वाला था किसी तरह अपनी माँ को मनाकर, भेड़ो को लेकर निकल गया इस वादे के साथ,की वो जल्दी लौट आएगा,,,,
अपनी माँ की  इजाजत पाकर रूप भेड़ो को ख़ुशी ख़ुशी लेकर चल दिया,,,,और रास्ते भर न जाने  कौन कौन सी बातें उनसे कर रहा था,,,
भंवरी बाई का मन बड़ा बेचैन हो रहा था दिल किसी अनहोनी की ओर इशारा कर रहा था लेकिन अपने बेटे के मनुहार के आगे थककर भवरी बाई ने उसे भेड़ो को बाहर ले जाने की इजाजत दे दी थी।।
आज आख़री बार मैं अकेला आया हूँ,,, तुम सब को लेकर,,, लेकिन अगली बार तुम की बाई सा भी होगी मेरे साथ,रूप ने भेड़ो से कहा,,,,
अपने आने वाले कल की कल्पना मात्र से ही रूप का रोम रोम पुलकित हो रहा था,,,,,
ऐसे ही बहुत देर तक अपने सुनहरे भविष्य के ख़ाब आँखो में  लिए और भेड़ो से बाते करते हुए,,, रूप न जाने कब शरहद उस पार पहुँच गया,,,,,उसे पता न चला,,, रूप को तंद्रा तब टूटी,, जब पड़ोसी देश के सैनिक रुप से सवाल जवाब करने,,,
रूप ने वहां के आला अधिकारियों के बहुत हाथ पैर जोड़े लेकिन उसकी किसी नही सुनी,,,, उसपर जासूस होने का इल्ज़ाम लगाकर उसे जेल में डाल दिया,,,,,, वह बहुत रोया और गिड़गिया ,,,,
मानो जैसे भगवान उससे रूठ गए थे।,,,
वही रूप के सरहद पार करने को खबर गाँव मे आग की तरह फैल गयी,,,, भवरी बाई और लखन सिंह दोनो का रुओ कर गला सुख गया,,, आसुँ ने  भी आँखो का साथ छोड़ दिया लेकिन उनका दर्द कम नही हुआ,,,
रूप को चौबीश घंटे से ज्यादा समय हो चुका था गए,,,लेकिन भवरी बाई के घर चूल्हा नही जला जिस बेटे की दो दिन बाद शादी  थी
उसे इस तरह अंजान देश मे कैद होने की खबर उनपर बज्रपात के जैसा था,,
,, किसी तरह रात सब की आँखो ही आँखो में कटी और,,, सुबह,,, रत्न सिंह( शन्नो के बापू) आ गए चुरू गाँव ,,, रूप के सरहद पार करने की खबर की पुष्टि  करने के लिए,,,,
भवरी बाई को  तो किसी बात का होश  ही नही था,,,, लखन सिंह से जैसे तैसे करके रत्न सिंह को सारी बात बताई,,,,, और कहा,,,, आप अपनी लड़कीं शादी कही और कर दो सा,, रूप कब तक आएवेगा कुछ खबर नही है ,,, !!!पता नही आएगा भी या,,,( आगे के शब्द उनके हलक में  ही अटक गए,,,और वो फुट फुट कर रोने लगे,,
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आँखे तो ग़मगीन रत्न सिंह की थी , लेकिन उन्हें अपनी बेटी की भविष्य की चिंता भी सताने लगी,,,,, 
रत्न सिंह  यही सोचते बिचारते अपने गाँव आ गए,,और रूप के साथ हुई सारी घटना शन्नो की माँ से बताने लगे,,
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शन्नो दरवाजे की ओट से सब सुन रही थी,,,, उसकी आँखें बरसने लगी,,, अभी तो उसके कोमल मन ने सपने  बुनने शुरू किया था,,उसने रूप के साथ न जाने कितने अरमान सजोए थे,,,, और अचानक उसके सारे सपने टूट गए,,,,
रत्न सिंह ,,, तू चिंता न  कर शन्नो की माँ मैं कल से दूसरा लड़का देखना शुरू कर दूँगा अपनी शन्नो के लिए,,,, 
अपने बापू के मुँह से ऐसी बात सुनकर शन्नो जड़  हो गयी,,, उसने  रूप के बारे जब पहली बार सुना था ,, तभी रूप उसके मन मंदिर बैठ गया,,, जहा से उसे निकलना न मुमकिन था,,,, शन्नो बिना किसी लोक लाज के अपने बापू के पैरों में गिर गयी।।,,,,,
रत्न सिंह और शन्नो की माँ  दोनो अवाक रह गए,,,,,
क्या हुआ शन्नो,,, ?? तू ऐसे क्यूँ रुओ रही है,,,,  रत्न सिंह क है,,,,और शन्नो को उठाते हुए कहते है,,,,
शन्नो का रोना अब सिसकियों में बदल गया,,,,बापू मैं किसी और से शादी न कर सकू,,,!!( वह रत्न का हाथ पकड़कर कहती है),,, 
रत्न सिंह शन्नो के मन की बात समझने का प्रयत्न करने लगे,,,, ये तू क्या कह रही है छोरी शन्नो की माँ थोड़े गुस्से में कहती है,,,
माँ मैं रूप के अलावा और किसी से और ब्याह न करुँगी ,,,, तब तक जोरदार थप्पड़ शन्नो के गाल पर पड़ चुका था,,, जो उसकी माँ ने मारा था,,, तू बावरी हो गयी,,,वह चीखते हुए कहती है,,,
आप चाहे जो समझो,,,, लेकिन मैं उनके अलावा किसी और कि न हो सकुँ,,, अगर आप ने मारे साथ जोर ज़बरदस्ती की तो मैं अपनी जान दे दूगी,,( शन्नो दृढ़ संकल्प के साथ बोली)
रत्न सिंह और उनकी पत्नी सन्न रह गए,,,, उन्होंने बहुत कोशिश की शन्नो की शादी  करने की लेकिन शन्नो ने अपना इरादा पक्का कर लिया,,,  अब तो शन्नो भोर में निकल जाती है,,,, उसके गाँव से छह कोष था सरहद,,, वह वहां जाकर सुबह से शाम तक रूप का इंतजार करती ,,,
यही हाल रूप का था जेल की चार दीवारी में बने छोटे से छरोखे से वह रोज बाहर देखता,,,
,,,न जाने किस हाल में होंगे मारे माँ सा,बापू सा और मेरा भाई,,,,शन्नो की एक ब्लैक एंड वाइट फोटो जो गलती से रूप के जेब मे रह गयी थी,,,,,रूप उस तस्वीर को देखकर रुओ पड़ा
,,, न जाने ईश्वर ने उसके भाग्य में कितने दिन वनवास लिखा था,,,, पिछले पैसठ सालो से एक दिन भी ऐसा नही गया जब उसे अपने परिवार और शन्नो की याद नही आती,,,,,, अब आँखे बुढ़ी हो चुकी थी, मिलन की आस लिए
,, बस ईश्वर से यही विनती करता कि एक बार मरने से पहले अपने भाई से मिल सकुँ(रूप खुद से कहता है)
,,,, मॉ बापू और शन्नो से मिलने की उम्मीद रूप ने कब का छोड़ दिया था,,,,,,
आज पैसठ सालो बाद दोनो देशों के सरकारों ने एक दूसरे के जेल में बंद कैदियों को छोड़ने का ऐलान कर दिया था,,, जिन्होंने गलती से सरहद पार कर लिया था, और जिनके खिलाफ कोई सबूत नही मिला था,,,,
जैसी ही ये खबर टीबी और अखबार पर आया,,, सबके मन मे खुशी की लहर दौड़ गयी,,,, शन्नो के देवर (महेश ) ने सब ये बात शन्नो को बताई जो कुछ सालों से महेश और उसके परिवार के साथ रहने लगी थी,,,, उसकी आँखें छलक गयी ,,,, जिस बात की उसने उम्मीद छोड़ दी, थी,, की वो इस जन्म में कभी रूप से मिल पाएगी,,,वो दिन अब जल्द आने वाला था,
रूप ने जब ये ख़बर सुनी तो बूढ़ी आँखे ख़ुशी से छलक उठी,, अबे माँ ने उसकी विनती सुन ली थी,,, अब तो वह एक एक दिन गिन रहा अपने परिवार से मिलने के लिए,,,,
सरकार ने एक खास दिन चुना था कैदियों को रिहा करने के लिए,,,, और देखते ही देखते वो दिन भी आ गया,,,, ऐसे बहुत से लोग थे जिनके सगे संबंधी बरसो से सीमा पार जेल में बंद थे,
आज रूप का भाई,,, उसकी पत्निय बच्चे नाती पोते,,, और शन्नो सब आये थे, रूप को घर ले जाने।।,,, 
शन्नो की नजरें उस पार से आने वाले लोगो के बीच रूप को ढूढ रही थी,,,,, आज वो बहुत खुश थी,, बूढ़ी आँखो में आज यौवन के दिनों वाली चमक थी,,,, मन में न जाने कैसे कैसे ख्याल आ रहे थे,,,, आज वो बिलकुल नई नबेली दुल्हनों वाली हरकत कर रही थी,,,, कभी कुछ सोचकर शर्माती तो  कभी अगले ही पल घबराने लगती है,,,,,
जैसे जैसे कैदियों के नाम, पुकारे जा रहे थे,,,,, वैसे वैसे रूप और शन्नो की धड़कने बढ़ने लगी,,,, रूप में मन मे अजीब से ख्याल आ रहे थे,, पता नही मारे घर  से कोई आया होगा, भी या नही , !!
क्या वो लोग मुझे पहचान पायेंगे ??
,,, रूप अपने ही सोच में डूबा हुआ था,,,, एकाएक उसका नाम पुकारा गया,,,, उसकी तंद्रा टूटी और वो अपने चारों तरफ देखने लगा,,,,,,  शरहद के इस पार भी उसका नाम गूँजा  ,,,, महेश  तुरत आगे आया,,,, दूसरी तरफ से रूप भी आया,,, दोनो ने भइयो ने एक दूसरे को पहचान लिया,,, , दोनो के आँखो से आँसू बहने लगे,,,, ,,,
शरहद पर लगा बैरिगेट खोल दिया गया,,,, रूप शरहद पारकर अपने देश मे आया और नीचे बैठकर अपने देश की मिट्टी को अपने माथे से लगा लिया और फुट फुट कर रोने लगा,,,, महेश भागते हुए आया और उसके गले लग गया न जाने कितनी देर तक दोनो भाई रोते रहे,,,, 
कुछ देर बाद  महेश ने उसे अपने परिवार से मिलाया,,,, शन्नो दूर खड़ी थी,,,, उसने अपने आँचल से बहते आंसू पोछ रही थी,,, महेश ,,,, रूप को शन्नो के पास ले आया,,,, शन्नो ने झुक कर रुप के पैर छु लिए।।,,, 
वही रुप पहचानने की कोशिश करने लगा
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क्यूँ भाई सा नही पहचान पा रहे हो क्या,,, महेश ने हल्के से मुस्कुरा कर कहा!!
रूप न  संकोच वश अपनी  गर्दन ना में हिला दिया,,,,
भाई सा ये मारी भाभी सा है,,, शन्नो है,,,
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शन्नो का नाम सुनकर,,,, रूप के कदम लड़खड़ा गए जिस बात की उसने कल्पना तक न कि थी,,,, आज वो प्रत्यक्ष उसके सामने खड़ी थी,,, ,रूप कभी हैरत भरी नजरों से महेश को देखता तो कभी शन्नो को,,,,
मानो वो यकीन करना चाहता हो  ये शन्नो ही है,,,,
भाई सा हैरान  मत हो,,,, ये सच है भाभी आज तक आप के नाम पर बैठी है,,,, इन्होने शादी  नही की,,,, बस अपनी पूरी उम्र आप के नाम कर दिया,,,, सती सावत्री है मारी भाभी सा, और देखो ईश्वर ने इनकी तपस्या पूरी कर दी,,,महेश ने कहा,,,,,, 
रूप  शन्नो का त्याग देखकर,,, जड़ हो गया,,,, उसके कदम धीरे धीरे शन्नो की ओर बढ़ने लगें,,,,शन्नो नववधु की तरह लजाई ,घबड़ाई सी खड़ी थी,,रूप उसके और करीब आकर उसे  अपने गले से लगा लिया
दोनो का इंतजार आज खत्म हो गया था ,,, दोनो एक दूसरे से लिपट कर रोने लगे,,,उनका ये मिलन देखकर  वहां खड़े सभी लोगो की आँखे भर गई,,,,  उसके बाद रूप ने चुटकी भर रेत उठाकर शन्नो की माँग भर दी,,,,, आज सही मायनों में दोनो की तपस्या खत्म हुई थी,,,
समाप्त,,,
सुमेधा शर्व शुक्ला
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