सरहद के पार जो भी है।
जाने उसे कैसा वैर हमसे है।
हमारे मुल्क का ही बोटा है वो।
आतंकवाद से दमकता गोटा है वो।
बेवजह हमें छेड़ता रहता।
एक अलग राग ही छेड़ता रहता।
कभी करता कश्मीर की मांग।
कभी खत्म ना होती इनकी मांग।
रह-रह कर प्रहार है करता।
हमारे जाॅंबाजों द्वारा खदेड़ा जाता।
फिर भी ना सुधरता हमारा पड़ोसी।
कभी अपने थे आज है वो परदेशी।
सरहद के पार जो भी है।
-चेतना सिंह,पूर्वी चंपारण