चौदहवीं का चाँद है ये प्रकृति हमारी।
कितनी सुहानी सुंदर है धरती हमारी।
देखो नजर उठाके जिधर जन्नत लगे।
कश्मीर में नजारे धरा की जन्नत लगे।
श्वेत बर्फ से ढका हिमालय मन भाये।
पहाड़ का ये झरना कितना मन भाये।
नीला नभ हरित ये धरती बड़ा सुहाए।
जलनिधि की ये लहरें कितना लुभाए।
वन उपवन जीवजन्तु सब इतने प्यारे।
तरह-2 के पुष्प खिले हैं कितने न्यारे।
जिस माँ की कोख  से हुए अवतरित।
राम कृष्ण बुद्ध आदि पैदा अवतरित।
हर एक माँ खुद ये चौदहवीं का चाँद।
सम्पूर्ण सृष्टि ही ये चौदहवीं का चाँद।
इतनी सुंदर होती हैं भारतीय नारियाँ।
ऐसी कहीं ना दिखती जग में नारियाँ।
14वीं का चाँद हैं ये पूनम का चाँद हैं।
जननी हैं सृष्टि की ये 1शीतल चाँद हैं।
पशु पक्षी कीट पतंगे दिखें बड़ा सुंदर।
रंग बिरंगी तितली मयूर कबूतर सुंदर।
घोड़े हाथी गाय बैल भैंस बकरे प्यारे।
कोयल बुलबुल पपीहे तीतर हैं प्यारे।
खरगोश तोते बिल्ली कुत्ता भी सुंदर।
घर के आँगन की गौरैया भी है सुंदर।
पर्यटन स्थल धार्मिक स्थल भी सुंदर।
अयोध्या काशी  मथुरा वृंदावन सुंदर।
इस प्रकृति की हर रचना बहुत सुंदर।
मानव निर्मित हर सरंचना भीहै सुंदर।
प्रभु की सम्पूर्ण सृष्टि 14वीं का चाँद।
ये  एक मुहावरा है चौदहवीं का चाँद।
रचयिता :
डॉ. विनय कुमार श्रीवास्तव
वरिष्ठ प्रवक्ता-पीबी कालेज,प्रतापगढ़ सिटी,उ.प्र.
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