समुद्र के पहरेदार सुनो
तुम क्या इसकी रक्षा
कभी कर पाओगे?
ये तो विशाल अनंत
इसकी नहीं तय सीमाएँ
किस किस दिशा में
तुम नज़र ऱख पाओगे?
व्यापक जलनिधि का
ये प्रतिनिधि तुम कैसे
इसे बांध पाओगे?
जलराशि में समाहित
बहुमूल्य मोती रत्न
इन्हें कहाँ छुपाओगे?
समुद्र की लहरों सा
उफ़नता डूबता ये मन
क्या इसे कैद कभी
तुम कर पाओगे?
ज्वार भाटे की तरह
ये अशांत ही रहता
क्या तुम इसकी गति
पर कभी भी
रोक लगा पाओगे??
स्वरचित
शैली भागवत “आस “✍️
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