देखो कैसी झेल रहीं हमारी बेटियाँ चारो तरफ है जुल्म।
समाज के पिशाचों की बर्बरता औ बुरी नजर का जुल्म।
जीवन जीना मुश्किल होगया रस्ता चलना हो गया दूभर।
सड़क छाप मजनुओं के मारे जाएं वह कैसे कहाँ किधर।
नहीं सुरक्षित जीवन उनका खतरा रहता है आने जाने में।
कैसे करें पढ़ाई पूरी अपनी स्कूलों कालेजों में वे जाने पे।
मानव भेष में दानवी घृणित सोचों घूरती नजरों से बैचेन।
बेटियों को मिलता नहींहै कहीं भी सुख शान्ति और चैन।
मानवता की हदें पार कर क्रूरता से इंसानियत हो शर्मिंदा।
सभ्य समाज में रहने लायक नहींहैं ऐसे इंसा नहों शर्मिंदा।
पहन मुखौटा इंसा के ये राक्षस घूम रहे हैं घर बाहर अंदर।
भरी शरारत जेहन में इनके पिशाच बैठाहुआ इनके अंदर।
रूप रंग से लगते मानव कृत्य करम दिखते असुरों के जैसे। 
मौके की बस तलाश में ही सिरफिरे झपटें नोचें काटें कैसे।
मानसिक रूप से बीमार हैं होते यह हैं समाज के पिशाच।
दरिन्दगी बहसीपन अमानवीय करम का सरताज पिशाच।
निर्भया की पीड़ा भूले भी नहीं लोग मौत की शिकार हुई।
हैदराबाद में डॉ. सक्सेना भी दरिन्दों की मौत शिकार हुई।
हाथरस में भी घटी घटना है मनीषा पर अत्याचार किया।
ऐसे अनजानी कितनी और बेटियाँ पिशाचों ने वार किया। 
बलात्कारियों के मन में जैसे समाज शासन से डर ही नहीं।
इनके सजा में देरी होने से ही शायद इन्हें सजा से डर नहीं।
समाज के इन पिशाचों के मुकदमें में सजा सुनायें जल्द तो।
शायद इससे कुछ सबक मिले इनको डर भी आये कुछ तो।
बालिग हो या नाबालिग हो परिवर्तन सजा में नहीं चाहिए।
जब कृत्य घृणित जुर्म अक्षम्य रहे तो दण्ड भी एक चाहिए।
सच पूछो तो इन्हें ऐसे जुर्म में सजा दें केवल मौत व फाँसी।
बलात्कार दरिन्दगी क्रूरता अत्याचार की सजा मिले फाँसी।
कानून सख्त हो ऐसा कि पिशाचों में सजा मौत से डर लागे।
दस बीस बलात्कारियों को सजा मौत की मिले तो डर लागे।
डर के बिना नहीं रुक सकता पिशाचों का यह गंदा जो खेल।
इन्हें सड़ा डालो जीवन भर जेल में ही मिले नहीं इनको बेल।
अंतिम सजा सुनाई जाए तो केवल व केवल फाँसी दी जाए।
समाज से बहसीपन कुछ तो दूर होगा इन्हें जो मौत दी जाए।
रचयिता :
डॉ. विनय कुमार श्रीवास्तव
जिलाध्यक्ष-प्रतापगढ़
ह्यूमन सेफ लाइफ फाउंडेशन,उ.प्र.
Spread the love

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *