कंगना की नई नई शादी हुई थी। जहां शादी हुई वहीं पास ही के गांव में कंगना का ननिहाल था। वह बहुत खुश थी कि जैसे वह छोटी थी तब ननिहाल में खेत घुमने जाया करती थी, ऐसे ही अब भी जा सकेगी ।असल में कंगना की मां, मीना देवी ने अपनी मां के गुज़र जाने के बाद अपने मायके वालों से रिश्ता तोड़ दिया था । इस बात को ८ साल बीत चुके थे। न वहां से कोई आता न यहां से कोई जाता। कंगना सबको बहुत याद करती थी । उसे आज भी सबकुछ याद है,

” नानी ओ नानी …” कंगना खिलखिलाती हुई अपनी नानी को ढूंढती हुई उनके कमरे की तरफ बढ़ती है।नानी अपनी उसी पुरानी चार पाइ में लेटी हुई थी। कमरे का रंग नानी के चेहरे की झुर्रियों की तरह ही हो चुका था । नानी को बिठाने के लिए भी मदद चाहिए होती थी । कोई आकर खिलाए तो ठीक वरना उन्हें भूख भी याद नहीं रहती थी, फिर इंसान कहां से याद होते ! नानी को अल्जाइमर था।मीना देवी और कंगना ने सहारा देकर नानी को बिठाने की कोशिश की और उनसे बतियाने लगीं। नानी को समझ कुछ नहीं आ रहा था लेकिन नानी बड़ी ही खुश दिख रही थी।

” मेरी बेटी को कहना, मुझे मिलने आए ….” नानी बस यही दोहराती रही ।” मेरी बेटी की शादी हो गई है साल भर हुआ, आई ही नहीं …. “

नानी की ऐसी बातों को सून मीना देवी और कंगना की आंखें भर आती हैं और मामी ने आकर दोनों को संभाला । एक नज़र में मामी कंगना के बहुत करीब थी लेकिन मीना देवी ने अपने दिल में उन्हें कभी जगह नहीं दी उसकी अपनी एक वजह थी।

” भाभी। अब मां का ख्याल मैं रखूंगी आप केयरटेकर हटा दो।” मीना देवी ने कहा ।

” आज तुम करोगी मीना, फिर कौन करेगा ! ये तो बिस्तर से उठ भी नहीं पातीं। उठाने के लिए भी दो लोग चाहिए । इनको नहलाने, बाथरूम जाने सारी बातों में दिक्कत होती है। थोड़ा समझदारी से काम लो। तकलीफ़ ऐसी है क्या कर सकते हैं !”

” ठीक है आप अपनी करो मैं अपनी, मैं जब-तक हूं मां का ख्याल सिर्फ मैं ही रखूंगी।”मां को डायपर बदलने की बारी आई तब मीना देवी ने अपने हाथों से ही खोला। मीना देवी की आंखों से आंसू थम ही नहीं रहे थे। शरीर जैसे गल रहा था। नानी कराह उठी। इतने बड़े छेद शरीर में देख कंगना भी घबराकर रोने लगी ।

” भाभी ओ भाभी…” मीना देवी ने आवाज दी । भाभी दौड़ती आईं ।” ये क्या भाभी, देखो मां को क्या हुआ है ! “

” अरे मीना घबरा मत हम अच्छे से अच्छे डॉक्टर की सलाह पर अमल करते हैं। ये सारा दिन बिस्तर पर होने की वजह से है। हमने दवाई शुरू कर दी है, ये लो अच्छे से दवाई लगा देना। मेरी मदद चाहिए तो बताओ । “

मीना देवी के आंसू केवल एक बेटी ही समझ सकती थी । वो कुछ नहीं बोली और मां की सेवा में लगी रही। तीन दिन बाद जब मीना देवी ने मां के पास जाकर सुबह सुबह उनके गालों पर प्यार से हाथ फेरा तो शरीर ठंडा पड़ चुका था ।

घबराकर कंगना अपने ख्यालों से बाहर आई और अपनी भीगी पलकें पोंछी। आज ८ साल बाद वह फिर उस घर जा रही थी, खुशी तो थी बचपन में हिलोरें लेने की मगर अब वह उस कमरे को देखना भी नहीं चाहती थी जहां उसकी नानी ने इतना दुख देखा था ।

” कंगना, तुम्हारी… मामी … हमें वेलकम तो करेगी ना ! ” विनोद ने थोड़ा सा अटकते हुए कहा।

” हां, मामी से मेरी बात हो गई है, फोन पर । वे बहुत खुश थी ।”दोनों कार में बैठ गांव पहुंच तो गए लेकिन पहले उतरने की हिम्मत दोनों ही में नहीं थी। आखिर कंगना को ही पहल करनी पड़ी, गाड़ी से उतर कर वह सीधी घर को नम आंखों से निहारती हुई अंदर गई। अब भी कुछ नहीं बदला था वही बरामदा, बरामदे के बाद बैठक फिर जो कमरा आता था वह नानी का। कमरे को देख कंगना की आंखें फटी की फटी रह गई। दिवार की तरफ मूंह कर एक वृद्ध महिला सिलाई मशीन के साथ बैठी थी और सुई में धागा पिरोने की कोशिश कर रही थी।

” मां… मी…. ” कंगना के गले से आवाज़ ही नहीं निकल पा रही थी।” अरे आ गई लाडो !” मामी ने कंगना का माथा चूम लिया ।

” ये क्या मामी आप इस कमरे में, इस हाल में और सिलाई का काम क्यों चालू किया ?” भरी आंखों के साथ कंगना ने पूछा ।

” अरे लाडो, बेटा बहू विदेश चले गए तो अकेली सारा दिन क्या करूं !” मामी की पथराई आंखों में सब दुख झलक रहा था ।

किसी ने सच ही कहा है’ समय खुद को दोहराता है।’आज किया सो कल लौट कर आना ही है, बुढ़ापे में अपना स्वास्थ्य अतिआवश्यक हो जाता है। वही हमारी असली पूंजी है जो अंत समय तक काम आती है। दोस्तों सभी स्वस्थ रहें मस्त रहें, इसी कामना के साथ लेखनी को विराम देती हूं। अस्तु ।।

आपकी अपनी(Deep)

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