हर एक से उम्मीदें लगाना छोर दिया,
सबने आज नाता तोड़ लिया…
आज कोई नहीं है अपना कहने को,
आख़री साँसों के हवाले छोड़ दिया…
हर एक पहलुओं को जीना सीखा था,
पर प्यार कहीं न नसीब हुआ…
एक उम्मीदें लगाए थे अपने से,
आज अपना कहना भी छोड़ दिया…
सोचता हूँ…रूह काँपने लगता है,
किसके लिये चलना सीखा…
आज मुँह भेरते हैं अपने,
क्या इसी दिन के लिये बड़ा किया…
क्या गलती था मेरा?
थोड़ा सोचने का भी ना मौका दिया…
एक इशारे थी अंगुली की,
विधी के हवाले छोड़ दिया…
भी तो लौटेगा अपना भी दिन,
नफ़रत की लाठी तोड़ दिया…
कोई मिले कभी अपने कहने को,
आज रिस्ता अपना जोड़ लिया…
एक एहसास रुलाया हर-पल,
कि किसने तेरा नाम दिय…
लौटेगा कोई तुम्हें मनाने को,
कोई तो आज तुम्हें अपना बना लिया…
         ✍विकास कुमार लाभ
                 मधुबनी(बिहार)
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