सच को बांधकर हथकड़ी में झूठ का बोलबाला है
सच को डरा धमका कर झूठ का देते हवाला है।।
बांधकर सच को बड़े-बड़े नोटों के बंडल से।
हर गली चौराहे पर झूठ का परचम लहराते हैं।।
अपनी जां पर खेलकर जो खबर लाते हैं पत्रकार।
खाई है कसम सच को उजागर करने का लगातार।
समाज के ठेकेदार पहुंच का दुरुपयोग करते हैं।
सच को बांधने का हर मुमकिन उपयोग करते हैं।
करते हैं प्रयास सच को उलझाने का झूठ के जाल में।
सच तो सच है उलझ सकता है नहीं मकड़जाल में।।
कोशिश हजार कर लो बांध नहीं सकते सच को जंजीर में।
बांधा है हमने भी खुद को सच की जंजीर में।।
अम्बिका झा ✍️