जनमत एक प्रोडक्ट,दर्शक उपभोक्ता,
खुली हुई खिड़कियाँ हैं, दिमाग बंद हैं, 
जुबान लहक रही है और आँखे तंग हैं, 
टीवी पर सुंदर सुंदर कबूतर चहक रहे हैं, 
सुना है कि मुर्दा लोग भी जागरुक हो रहे है,
तूतू मैं करते लोग, जाने क्या सिद्ध कर रहे है 
एक पंक्ति की खबर में सब कुछ होता है,बस 
उस सर्कस में, एक ‘सच’ ही दफ़न होता है l 
पैसों की जंजीरो में, सबकुछ जकड़ा होता है,
कहने की आजादी में’कुछ और ही खेल होता है,
चिल्ला चिल्ला कर ‘सच’ कहने का ढोंग होता है,
झूठ को जामा पहना, एक फ़ँतासी रची जाती है,
बार बार दुहराकर उसे, सच्चाई दबा दी जाती है, 
जब’सच’ के नंगे उघड़े बदन को ढँक नहीं पाते हैं, 
सौ सौ बार उसे दिखाकर, अपनी पीठ थपथपाते हैं,
कभी हाथ से लिखे ‘दो कागज’ देश जगा जाते थे,
आज सौ सौ लंगूर नाचकर भी सच कह नहीं पाते हैं l
✍️शालिनी गुप्ता प्रेमकमल🌸
स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित
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