अब सम्बन्धों के बीच चीजें आ गयीं
हो गए सब और थोड़ी दूर ,
फूल खिलते थे जहां स्नेहिल भाव भरे,
आ गयीं संसार की अब रंग रांची दृष्टियाँ।
धुंधला गयीं स्मृतियां, बन गयीं अब किनारे की विटप पंक्तियां।
क्या हो इस बीच के पथ का?
क्या होगा अन्तःपुरो में भागते उन अदेखे-अप्रतिहत रथों का?
तितलियां थीं जहां
चीलें छा गयीं
अब सबके बीच दूरियाँ आ गयीं।
सुषमा श्रीवास्तव,मौलिक कृति,सर्वाधिकार सुरक्षित, रुद्रपुर, उत्तराखंड।
