सखि देख , बासंती ऋतु आई
पतझड़ गयो कोंपलें फूटी
कलियों पे बहारें छाई ।
सखि देख, बासंती ऋतु आई ।।
कोयल बोल रही अमियन में
दिल में हूक जगाई
साजन बैरी गये विदेसवा
सुध बुध सब बिसराई ।
सखि देख, बासंती ऋतु आई ।।
पीली चादर ओढ़ के धरती
कर सोलह श्रंगार
चली पिया को मिलन ये प्रकृति
हिय में ले के प्रेम अपार
खुशी जाकी बरनी न जाई ।
सखि देख, बासंती ऋतु आई ।।
आस का दीपक जले जिया में
उम्मीदों की किरण सजाई
दुख के बादल छंट गये सगरे
अब सुख की घटाएं छाई ।
सखि देख, बासंती ऋतु आई ।।
हरिशंकर गोयल “हरि”