सुहागन
आजकल समाज संस्कार विहीन सा होता जा रहा है। मानवता जैसे खत्म सी हो गई है।
ऐसे ही एक सभ्य परिवार की परिभाषा है, जो अपने संस्कारों को भुल नहीं पाये है।
नीलम एक सामान्य परिवार से थी,जिसका विवाह बाल विवाह हुआ था। पर उनके माता-पिता ने उसे ऐसे संस्कारों से पाला था कि वह अपने संस्कारों को कभी भुलाया नहीं, विवाह के बाद नीलम का पति शशांक जो पांच वर्ष तक सीमा पर एक सैनिक बनकर देश की सेवा करने के बाद घर वापस लौट कर आया,तब नीलम का गौना हुआ।नीलम ढेरों सपने संजोए अपने ससुराल पहुंची वहां उसका खूब आदर-सत्कार किया गया।उसे लगा कि वह स्वर्ग में आ गयी है। पर दो ही दिन हुए थे कि शशांक के पोस्टीग की खबर आ गई।शशांक बहुत निराश होगया। मगर जब नीलम को ये मालूम पड़ा तब उसने शशांक को बहुत गर्व के साथ विदा किया।
नीलम से उसके पति ने कहा कि अगर मैं वापस नहीं आ पाया तो तुम दुसरी शादी कर लेना पता नहीं मैं जीवित रहुं या नहीं,नीलम ने शशांक से कहा कि मैं आपका इंतजार जीवन भर करुंगी। मैं ये जानती हुं कि मेरे कान्हा जी कभी मेरे सुहाग पर कोई संकट नहीं आने देंगे।
मैं जबतक जीवित रहुंगी तबतक सुहागन स्त्री की तरह रहुंगी।
आप जल्दी ही वापस आजएंगे।
नीलम का पति शशांक सीमा पर तैनात रहकर अपने देश की सेवा करता रहा
और नीलम को यहां पर कई वर्ष बीत गए मगर न शशांक की कोई खबर नहीं आई , परिवार वाले बहुत परेशान रहने लगे।
सभी को सिर्फ यही चिंता खाई जा रही थी कि अगर शशांक नहीं आया तो नीलम का क्या होगा, मगर नीलम ने अपना विश्वास नहीं तोड़ा ।।
आखिरकार शशांक ने हर संकट का सामना कर के वापस लौटआया परिवार वालों के खुशीयों का तो
ठिकाना ही नहीं था। नीलम ने जब
शशांक को देखा तो उसके अश्रु बंद ही नहीं हो रहे थे।तब शशांक ने कहा नीलम मै तुम्हारा शशांक।।
(स्वरचित) रचना
अर्चना पांडेय आर्ची
गोरखपुर