अस्ताचल गामी अरुणिम पुंज
झलक रहा क्षितिज पर ,
अस्तित्व में आने को  प्रयासरत 
अंधकार को पराजित करने 
आ रहा शशि शिखर पर ,
खग विहग चले करने विश्राम
अपने अपने घरों को
आकाश में पँक्तिबद्ध पक्षी 
उड़ चले एक ही दिशा में
पढा रहे पाठ संगठने शक्ति  
अवनि की रज उसे ही सौंपते
धूल धूसरित पशु  चले
स्वामी का संकेत लेकर
द्वार पर प्रतीक्षारत खड़ी धरनी
धीरज रख मन आते होंगे पति 
समझा रही व्याकुल उद्गारों को
क्रीड़ा से क्लान्त हुए बाल बालक 
बलपूर्वक छिप रहे मां के आँचल में
निद्रालोक में खो न जायें बालक
इस भय से गृहिणी तत्परता से
कर रहीं व्यवस्था भोजन  की 
प्रकृति ने समेट लिया अपना आँचल 
सबको दिया समय विश्राम करने को 
रेनु सिंह
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