,शापित नही होती सन्तान
माँ बाप के लिए
चाहे वो कैसी भी हो
उनके आँख का तारा होती
जिसमे बसती उनकी जान

शापित कहने से सन्तान को
कोख मां की कलंकित होती
ये तो अनमोल भेंट है ईश्वर की
जो स्त्री को पूर्णता प्रदान करती

अगर दुख देती है सन्तान
तोभी उनके हाथ  आशीर्वाद मे ही उठते
और मुँह से  बस दुआ ही निकलती
अगर सबकुछ छीन कर देते बेघर
तो बस कहते  यही
कि कमी कोइ रही  होगी
    परवरिश मे हीे हमारी
या फल होगा हमारे  ही कर्मो का

पर सन्तान कब बदल जाये
पता नही इसका
और छोड़ दे अकेला उनको
इंतजार मे सन्तान के पथरा जाती आँखे
और मिट्टी को भी उनका हाथ नही लगता।

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