“पार्वती महादेव विवाह”

हिमालय ऋषि वापस आ, मैना से कहते हैं। शादी की तैयारियां शुरू करिए।

सुंदर योग्य वर पार्वती के लिए ढूंढ लिया है। मैना, विवाह की तैयारियों में जुट गई। हिमालय ऋषि ने तरह-तरह के हीरे जवाहरात मणियों से अपने राजमहल को सजवाया। पूरे राज्य में फूलों के तोरण लगवाए । मुख्य द्वार को फूलों की लड़ियों से सजवाया। बारातियों के स्वागत के लिए भव्य आयोजन किया। जो जैसे बाराती वैसा ही भोजन। नृत्य, गायन, पूरे राज्य में खुशियों का माहौल छा गया।सारे सगे संबंधियों को निमंत्रण भेज दिया गया। इधर महादेव ने सारे देवताओं सहित भूत प्रेत कीट पतंग सबको अपने विवाह में आमंत्रित किया। निश्चित तिथि पर सारे ही देवता रथ सज़ा एवं हाथी घोड़ों पर बैठकर आगे आगे चल पड़े । महादेव सबसे पीछे पीछे नन्दी पर सवार हो निकले।चार दिनों बाद बाराती नगर के मुख्य द्वार पर आए।सारे ही देवता रथ हाथी घोड़ों पर सवार। पीतांबर  पहन हीरे-जवाहरात मोती के हार पहन आलौकित तेज। नगर वासी देखते ही मंत्रमुग्ध हो गये। पार्वती के भाग्य की प्रशंसा करते हुए एक दूसरे को बताने लगे।गांव की स्त्रियां अपनी अपनी छत के उपर से झांक झांक कर देखने लगीं।   हिमालय ऋषि अपने कुटुंब के साथ बारातियों का सत्कार करने लगे।मैना नारद जी के साथ वर को देखने आयी।सबसे आगे गंधर्व राज बैठे हुए थे।उनकी सुंदरता देख मैना को लगा यही वर है।तब नारद जी ने कहा नहीं ये वर नहीं हैं, ये तो देवताओं के गायक हैं। उसके बाद धर्मराज बैठे हुए थे। उनके रूप को देखकर मैना मन ही मन सोचने लगी कि यही वर होंगे। तब नारद जी ने कहा नहीं, यह तो धर्मराज हैं।ब्रह्मा, विष्णु, इंद्र सारे ही देवता बैठे हुए थे। सभी देवताओं को देखकर मैना सोचती, यही वर है। नारद जी कहते, नहीं यह तो देवता हैं। मैना मन ही मन पार्वती के भाग्य पर गर्व करने लगी। जिनके बाराती इतने सुंदर है। वर कितने सुंदर होंगे।मैना के मन में अहंकार ने प्रवेश कर लिया।तभी नारद जी ने कहा, लो वर आ गये।आगे आगे भूत प्रेत बेताल नाचते गाते। उनके अंहकार को तोड़ने के लिए महादेव बुड्ढे बैल पर बैठ कर आये।महादेव के पांच मुख, तीन आंखें, दस हाथ,पूरे शरीर में भस्म लगाए, माथे पर चंद्रमा। एक हाथ में खप्पर, दूसरे में भिक्षा पात्र। तीसरे मैं पिनाक, चोथे मैं  तीर। पांचवे में त्रिशूल छठे में अभय। इसी तरह हर हाथ में कुछ ना कुछ रखे हुए। गले में सर्पों की माला। बाघम्बर ओढ़े।पूरे शरीर पर सांप। आंखें बंद। थर-थर कांपते हुए।वर को देखते ही मैना बेहोश हो गई।होश में आने पर मैना नारद जी का अपमान करने लगती है। विवाह के मंडप को पूरी तरह से तोड़कर तहस-नहस कर देती हैं। पार्वती को ले कमरे में बंद हो जाती हैं ।कहती हैं हमें ऐसे वर से पार्वती का विवाह नहीं करना।पार्वती मन ही मन महादेव से प्रार्थना करती हैं। महादेव असली रूप में आ जाते हैं।भस्म हटा, तिलक लगा, पीतांबर पहन, गले में रुद्राक्ष की माला, मस्तक पर चांद सुशोभित, अद्भुत रूप देखकर सारे ही नगर वासी मोहित हो जाते हैं।नारद जी आ मैना से कहते हैं। एक बार पुनः देख लो वर को।मैना पुनः वर को देखने जाती है। उनके रूप को देखकर प्रसन्न हो जाती है ।खुशी खुशी आरती उतार कर वर को आंगन लेकर आती है।देवता मन ही मन सोचते हैं कि, कहीं महादेव फिर से कोई तमाशा न करें। जल्दी-जल्दी देवताओं ने सप्तऋषि के सामने पार्वती संग महादेव का विवाह पूरे विधि विधान से संपन्न करवाने का आग्रह किया।।पार्वती की विदाई के लिए, हिमालय ऋषि ने, तरह-तरह के वस्त्र,मिठाई, फल और हीरे-जवाहरात, सोना चांदी से भरा हुआ पात्र, सौ हाथी,सौ घोड़े से जुता रथ, सौ पालकी सहित सौ से अधिक दास दासियां।बैल गाड़ी पर मिठाई एवं विभिन्न प्रकार की वस्तुएं बेटी की विदाई के लिए तैयार कर रखे थे।महादेव सामान ले जाने से मना कर देते हैं ।कहते हैं छोटी सी कुटिया है। जंगल में रहते हैं। इन वस्तुओं का हमें का काम।इतना सुनते ही हिमालय ऋषि क्रोधित हो जाते हैं। कहते हैं छोटी सी कुटिया में जंगल में रहते हो?तुम्हारा घर बार नहीं है? ज़मीन जायदाद नहीं?क्या तुम भिखारी हो?फूल सी राजकुमारी छोटी कुटिया में जंगल में कैसे रहेगी। जहां दास दासिया न हों।हिमालय ऋषि, पार्वती से कहते हैं। इस भिखारी के साथ कहीं नहीं जाओगी।इसी राज महल में हमारे साथ रहोगी।पार्वती कहती हैं, पिता जी आपने कन्यादान कर दिया। अब हम आपकी कन्या नहीं,महादेव की अर्धांगिनी हैं। जहां मेरे स्वामी जाएंगे, हम वही जाएंगे। चाहे वह जंगल में लेकर जाएं या फिर महल में। हिमालय ऋषि क्रोधित हो पार्वती से कहते हैं। आज से तुम हमारी पुत्री नहीं। हम तुम्हारे पिता नहीं। तुम हमारे लिए मर गई।जिस रास्ते से जा रही, उस रास्ते को हमेशा के लिए भूल जाना। कभी भी वापस मत आना। महादेव पार्वती को लेकर वहां से विदा हो जाते हैं।।क्रमशः

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