“शिव शक्ति का पुनः मिलन”

“उमा को बाघ खा गया।  शिवजी अंतर्ध्यान हो गए।मैंना फूट-फूट कर रोने लगी। 
मैना की करुण पुकार से धरती और आकाश हिलने लगा। मैना रुदन करते हुए, बाघ से विनती करने लगी आप हमें भी खा जाओ। संतान बिना जीकर हम क्या करेंगे। मैना के करुण विलाप को सुनकर बाघ ने कहा उमा पुनः आपकी संतान बनकर पार्वती के रूप में जन्म लेंगी। इतना कह कर बाघ अंतर्ध्यान हो गये ।
पुनः देवी  गर्भवती हो गई नौवें मास में उन्होंने एक सुंदर कन्या को जन्म दिया।      
जन्म के समय से ही देवी पार्वती के माथे पर एक अलौकिक तेज प्रकाशमान हो रहा था। घर में उत्साह और खुशी लौट आई। देवी मैना और हिमालय ऋषि अपनी कन्या का बहुत ही लाड प्यार और संस्कार से पालन करने लगे ।      
उनकी विलक्षण बुद्धि और तेज से  सभी स्त्री-पुरुष प्रभावित हुए बिना नहीं रह पाए।      
इंसान तो इंसान पशु पक्षी भी उनके मित्र हो गए। जानवरों के साथ वह ऐसे खेल रही थी, जैसे कोई मिट्टी के खिलौने से। धीरे-धीरे समय व्यतीत हुआ। पार्वती सात वर्ष की हुई, खेलते हुए  नदी के तट पर गई तो उन्होंने देखा, नदी के उस पार बहुत ही सुंदर तपोवन है। 
तपोवन की सुंदरता देखकर उनकी इच्छा उस तपोवन में जाने की हुई। वह नदी तट पर जैसे ही आईं, नदी ने बहुत जोर की हिलकोर ली और आगे आकर देवी के चरण पखारने लगी। फिर देवी पार्वती नदी पार करके तपोवन में प्रवेश कर गई।  ,      
जैसे ही  देवी ने तपोवन में प्रवेश किया, सारे जीव जंतु पशु और पक्षी उनके स्वागत में नाचने गाने लगे। फूलों की डालियां झूम झूम कर उन पर फूलों की वर्षा करने लगीं।
देवी पार्वती का तपोवन में स्वागत करने के लिए, स्वयं शिव कुटिया से बाहर आ गए।  
शिव को देखते ही पार्वती को अपना पूर्व जन्म याद आ गया। वह महादेव को अपलक निहारने लगी।
शिव पार्वती एक दूसरे को घंटो देखते रहे। इस मधुर मिलन में सारे देवता आकाश से पुष्प की वर्षा करने लगे।
अब रोज ही पार्वती सारी सहेलियों के साथ तपोवन में आने लगी। शिव की पूजा अर्चना उनकी सेवा और मन ही मन उन्हें  पति रूप में चाहने लगी। शाम को फूलों की डाली को सजा कर घर आ जाती। ऐसा, नित्य दिन होने लगा। एक दिन हिमालय ऋषि पूजा कर रहे थे। पूजा घर में तपोवन के फूल को देखकर उन्हें आश्चर्य हुआ।वह देवी मैना से इस बात को जानकर, यह सारे फूल देवी पार्वती लाई हैं ।उन्हें पार्वती की चिंता होने लगी। उन्होंने देवी मैना से कहा। पार्वती को तपोवन ना जाने दे। देवी मैना ने पार्वती से कहा! आप तपोवन मत जाया करो। वहां तरह-तरह के जहरीले जीव जंतु और बहुत ही खतरनाक जानवर रहते हैं। जो आप को हानि पहुंचा सकते हैं,।
दूसरे दिन सहेलियों के घर बुलाने आने पर पार्वती ने जाने से मना कर दिया। सारी सहेलियां बिना पार्वती को लिए ही  घर से निकल गईं।
नदी तट पर जैसे ही पहुंची, शिव जी ने देखा देवी सच्ची नहीं आ रही है, तो उन्होंने नदी की चौड़ाई और लंबाई बढ़ा दी। सारी सहेलियां चलती जा रही थीं। नदी बढ़ती जा रही थी ।
बहुत समय उपरांत भी जब नदी का रास्ता खत्म नहीं हुआ तो , सारी सहेलियां वापस आ गईं ।
आकर देवी  पार्वती से  कहने  लगीं हम  लोग  रास्ता भटक गए। हमें  याद नहीं, आप भी  हमारे साथ चलो। पार्वती स्वयं महादेव से मिलने के लिए व्याकुल थी। माता  की आज्ञा का  उल्लंघन  कैसे  करती । इसलिए जाने से इनकार कर दिया।
सारी सहेलियों ने मिलकर देवी मैना से पार्वती के  रूप गुण और तेज की बखान करने लगी अपनी कन्या के इतने बखान सुनकर देवी मैना,
आत्म विभोर हो गई। उन्होंने तपोवन जाने के लिए कन्या को हां कर दी।
सारी सहेलियां मिलकर नदी पर जैसे ही आईं नदी आगे आकर उनका चरण पखारने लगी। फिर सारी  सहेलियां  तपोवन में आ गईं।
सारी सहेलियां तो फूल बेलपत्र तोड़ने चिड़ियों की चहचहाहट और तितलियों को पकड़ने में खुद को भूल गईं  और  देवी पार्वती महादेव की  कुटिया में जाकर महादेव की पूजा-अर्चना उनकी सेवा करने लगी।
पार्वती जब शादी योग्य हो गई तो उनके पिता वर के तलाश में घर से निकल पड़े। परन्तु उनकी कन्या पार्वती के योग्य वर कहीं नहीं मिला, वह लौटकर अपने राज्य आ रहे थे, ब्राह्मण के रूप में उन्हें एक ऋषि मिले, उन्होंने पूछा आप कहां से आ रहे हो।
हिमालय ऋषि ने कहा हमारी पुत्री सर्वगुण संपन्न तेजमयी रूपमयी  अस्त्र शास्त्र में निपुण हैं उनके लिए वर ढूंढने गए थे । परन्तु उनके सामर्थ्य के अनुसार तीनों लोकों में कहीं कोई वर नहीं मिले अभी घर जा रहे हैं।।


ब्राह्मण वेषधारी ऋषि ने कहा, हम भी हमारे राजकुमार के लिए जो तीनों लोकों में सबसे गुणवान रूपवान तेजवान धर्म निष्ठावान कल्याण कारक तीनों लोकों के रचयिता देवों के देव महादेव उनके विवाह के लिए कन्या देखने गए थे। परन्तु उनके जैसा उनके सामर्थ में कहीं भी कोई कन्या नहीं मिली। हम भी वापस घर जा रहे हैं।


कुछ सोच कर फिर से ब्राह्मण वेषधारी ऋषि ने कहा, आप अगर उचित मानो, हम अपने राजकुमार की शादी आप की कन्या से करना चाहते हैं । महादेव के इतने  गुण और बखान सुनकर हिमालय ऋषि अपनी कन्या का विवाह उनसे करने के लिए मान गए।
दोनों ही अपने-अपने घर आकर शादी की तैयारियों में जुट गए। क्रमशः

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