धरती स्थापना के उपरांत जब पुनः धरती ऊपर आकर स्थापित हो जाती है तो, ब्रह्मा विष्णु महेश आदि देवताओं ने विचार किया। कहीं फिर से मनुष्यों के व्यवहार से क्रोधित होकर पृथ्वी पाताल में न चली जाए।
जिस कारण नियमावली बनाई गई।
जिस में सूर्य उदय से पहले ही निद्रा त्याग कर नित्य क्रिया से निवृत हो भजन पूजन के उपरांत, भोजन आदी का नियम बनाया गया।
तदोपरांत स्त्री गृह कार्य एवं पुरुष गृह उपयोगी वस्तुओं की व्यवस्था में लग जाए।
सूर्यास्त से पहले ही सभी मनुष्यों को गृह प्रवेश का नियम भी बनाया गया।
सूर्यास्त के समय संध्या पूजन प्रसाद लेने का नियम बनाया गया।
रात्रि भोजन शास्त्रों के अनुसार वर्जित है।
बालक वृद्ध एवं रोगियों के लिए फल, दूध, नीर या औषधि लेने का नियम बनाया गया।।
सृष्टि निर्माण हेतु फिर प्रकृति की उत्पत्ति हुईं। पेड़ पौधों की उत्पत्ति एवं सुचारू रूप से जीवन निर्वाह हेतु, अन्नपूर्णा को बनाया गया।
बाहर घंटे का दिन और बारह घंटे की रात।
सूर्य को गर्मी देने एवं दिन की रखवाली और चांद को शीतलता, एवं रात की रखवाली पर रखा गया।
इसी तरह पवन को वायु के लिए, इंद्र को मेघ के लिए, विश्वकर्मा को गृहनिर्माण, अग्नि को हवन पूजन में धूप-दीप जलाने के अलावा छुधा शांति में उपयोगी वस्तुओं को बनाने में मदद करने के लिए। अनन्य देवताओं को उनके गुणों के अनुसार कार्य भार सौंपा गया। इसी प्रकार वर्ण व्यवस्था समाज को चार वर्णों (ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र) में विभाजित किया गया। उन्हें उनकी योग्यता अनुसार कार्य भार सौंपा गया।
सुचारू रूप से जीवन निर्वाह हेतु जगह जगह योग्य राजा को, नगर सुरक्षा हेतु व्यवस्था करने एवं देखभाल
के लिए रखा गया।
राजाओं ने पृथ्वी पर यज्ञ हवन पाठ करना जब आरंभ कर दिया तो, उनकी देखा देखी साधारण प्राणी भी उसी में संलग्न हो गये। जिस कारण सृष्टि की उत्पत्ति ठहर गई। उस समय के राजाओं ने अपने मंत्रिमंडल से कहा आप धरती लोक के हर कोने में जाकर पता कीजिए, इंसान की उत्पत्ति क्यों कर रूक गई। जब मंत्री मंडल सहित हजारों सैनिक हर राज्य, हर नगर में गए। वहां लोगों से बातचीत करने का प्रयास किया तो, सभी लोग उस विषय में बात करने को ही मना करने लगे। सबसे बात करने के बाद उन्हें यह पता चला कि सब लोग तो धर्म-कर्म जप तप में संलग्न हो गए हैं। किसी का भी संतान उत्पत्ति करने की ओर ध्यान ही नहीं है।
सभी प्राणियों का मन ही हट गया है।
सभी राजाओं द्वारा मंत्रणा करने के उपरांत यह निर्णय लिया गया कि अधिक समय, सभी प्राणी पूजा स्थल पर ही व्यतीत करते हैं।
इसलिए जगह जगह विशाल विशाल मंदिरों का निर्माण करने के लिए शिल्पकारों से कहा गया है।
मंदिरों में इस तरह की आकृति बनाई जाए,
जिससे मनुष्यों में सोया हुआ काम फिर से जागृत हो जाए।
शिल्पकारों ने ऐसा ही किया। चुंकि मंदिरों में इस तरह का शिल्प देख कर कुछ राजाओं ने विरोध भी किया। किंतु कुछ राजाओं ने समर्थन भी किया।
परिणाम स्वरूप फिर से सुचारू रूप से सृष्टि में वृद्धि होने लगी।।”अम्बिका झा ✍️
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