“जिस समय सर्वत्र अंधकार ही अंधकार था। ना सूरज, ना चंद्रमा। ग्रह नक्षत्रों का कहीं कोई पता नहीं था ।न दिन होता था न रात। पृथ्वी जल और वायु की भी सत्ता नहीं थी। उस समय सारे देवता एक दिन सभा में उपस्थित थे। तभी उन लोगों ने विचार किया कि संसार बसाने के लिए धरती स्थापित करना चाहिए। हर तरफ सिर्फ जल ही जल फिर महादेव ने कहा।
जल मैं रहने वाले जीव अगर नीचे से मिट्टी निकाल कर ले आएं, तो जिस प्रकार दूध में थोड़ा सा दही मिलाकर कर जमने के लिए छोड़ देते हैं। वैसे ही मिट्टी पानी में मिलाकर जमा देंगे। पानी में रहने वाले सारे जीवों को आदेश दिया। नीचे से मिट्टी लेकर आएं।
पर जो भी जीव जाते मिट्टी लेकर आते आते रास्ते मैं ही,बह जाती। वह ऊपर नही ला पाए। फिर विष्णु भगवान मगरमच्छ का रूप ले पानी के नीचे से मिट्टी लेकर आए।
फिर ब्रम्हा जी से कहा, तीन भाग छोड़कर सिर्फ एक भाग मैं इस मिट्टी को अच्छी तरह मिला दो। ब्रम्हा जी पानी में मिट्टी मिला कर आ गये। कुछ दिनों बाद जब देवता देखने गए तो धरती तो जम गयी थी। परन्तु पैर रखते ही धरती हिलने लगी।
फिर कछुए को बुलवाया गया और कहा तुम जाकर धरती के नीचे, पकड़ कर रखो। ताकि धरती ना हिले।
फिर भी धरती हिल ही रही थी। फिर वासुकी नाग को बुलाया और कहा तुम कछुए के इर्द गिर्द खुद को लपेट लो ताकि कछुआ ना हिले, जिससे धरती भी ना हिले। नाग ने वैसा ही किया। फिर भी धरती हिल रही थी। फिर विष्णु जी एक हाथ पर धरती के आधे भार को उठाया।
जिससे धरती का हिलना बंद हो गया। फिर विष्णु जी ने ब्रम्हा जी से कहा। आप अपनी शक्ति द्वारा संतान उत्पन्न कीजिए, ताकि संसार सके।
तप द्वारा ब्रम्हा जी ने चार मानस पुत्रों को जन्म दिया। उनसे कहा, तुम लोग गृहस्थ आश्रम बसा, खुशी पूर्वक रहो।
पर चारों ही पुत्र हाथ में कमंडल ले विदा हो गए। कहा-हम लोग तप करने जा रहे। फिर ब्रम्हा जी ने क्रोधित होकर चारों पुत्रों को श्राप दे दिया, और कहा। तुमने अपने पिता की आज्ञा का उल्लंघन किया है, तो जाओ। तुम चारों बालक ही रहोगे ।बालक के रूप से युवा कभी नहीं हो पाओगे।
फिर ब्रम्हा जी ने बहुत वर्षों तक तप करने के बाद,तप के प्रभाव से द़क्ष को जन्म दिया।
फिर दक्ष ने गृहस्थ आश्रम बसा कर,सत्ताइस कन्याओं को जन्म दिया। जिसमें भगवती अंबिका ने सती रूप में जन्म लिया। जिससे महादेव ने विवाह किया। कुछ दिनों बाद धरती पर पाप बढ़ने लगा। जिस कारण धरती घबराकर पाताल चली गयी। फिर देवताओं ने विचार-विमर्श कर कहा, धरती पाताल चली गयी। संसार बसाने के लिए। उनको किसी तरह मना कर ऊपर लाना होगा। या, फिर से धरती स्थापित करना होगी। फिर सारे देवता मिलकर, धरती से प्रार्थना करने पाताल लोक गये।
धरती से कहते हैं! आप ऊपर आ जाओ। धरती कहती हैं! लोग हमारे ऊपर मल मूत्र त्याग करते हैं। धरती पर जितने भी पाप होंगे। हम उस पाप के भागीदार होंगे।
देवता कहते हैं! आप चिंता मत करिए। मल मूत्र त्याग करने के बाद जो उसे देख लेंगे, पाप उनके साथ चले जाएंगे।
आप को प्रणाम कर क्षमा मांगे बिना आपके ऊपर पैर रखेगा, वह पाप का भागी होगा। इसी प्रकार जो मनुष्य पाप-पुण्य करेंगे उसका फल वो प्राप्त करेंगे। फिर धरती मान गयी, वापस आने के लिए।।”
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Bahit hi sunder kahani