“चनाई संग बैरसी नगर भ्रमण”

“राज्य के हर कार्य में, गोसाउन को, निर्णय लेने का पूरा अधिकार है। राज्य में सब गोसाउन का बहुत ही सम्मान करने लगते हैं।
घर और बाहर दोनों जगह प्यार और सम्मान मिलते देख, लिली को, गोसाउन से डाह होने लगती है।
लिली हर वो संभव प्रयास करती है, जिससे बैरसी, गोसाउन के नजदीक ना आ पाए।
परन्तु गोसाउन के साथ काम करते-करते और गोसाउन के गुणों को देखते हुए, बैरसी के मन में गोसाउन के लिए और अधिक सम्मान बढ़ गया।
एक दिन रात को, खेत में अचानक आग लग जाने के कारण, पूरी फ़सल बर्बाद हो जाती है।
फिर भी बैरसी ने मजदूरों को, उनका पूरा मेहनताना दिया तो, गोसाउन के मन में भी बैरसी के लिए सम्मान बढ़ गया।
गोसाउन के मन में, बैरसी जैसे ही योग्य राजकुमार की माँ, बनने की लालसा जागृत हो गयी।
परन्तु बैरसी जैसे ही, गोसाउन के साथ, कुछ भी बात करने की कोशिश करता…
लिली बीच में आ जाती। बैरसी लिली से बात करने में गोसाउन को भूल जाता।
विवाह के एक वर्ष बाद, गोसाउन की सब बहनों को पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है।
उसके बाद गोसाउन को, गोद भराई जैसी रस्मों में नहीं बुलाया जाता।
इस बात से, गोसाउन को बहुत पीड़ा होती है।
फिर गोसाउन, दिन में एक समय फलाहार ग्रहण कर के, महादेव का अभिषेक करती है। वह रोज ब्रह्म मुहूर्त में उठकर, स्नान कर, महादेव मंदिर जाकर, अभिषेक करती है। वह पूरे मनोयोग से पूजन करते हुए, खुद को समर्पित कर देती है।
इसके साथ ही, राजमहल की देखभाल सहित, पूरे राज्य के कार्य में भी, हर पल तत्पर रहती है।
गोसाउन के तप और पूजन से प्रश्न होकर, महादेव, गोसाउन के सामने प्रकट होते हैं। महादेव कहते हैं! हम तुम्हारे तप और पूजन से, बहुत प्रसन्न हैं। माँगों क्या चाहिए…?
तुम, दो वरदान प्राप्त कर सकती हो।
गोसाउन, बैरसी की तरह ही, पांच पुत्रों की प्राप्ति का वरदान मांगती है। अपने राज्य की तरक्की और खुशहाली माँगती है।
तब महादेव कहते हैं कि, सुहाग का प्यार तुम्हारे भाग्य में नहीं। इसलिए तुम्हें स्वयं ही प्रयास करना होगा। तुम्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति अवश्य होगी।
इधर चनाई देखते हैं कि, लिली एक पल के लिए भी, बैरसी को अकेला नहीं छोड़ती है। बैरसी अपने ससुर के श्राप के कारण, घर से बाहर नहीं जा सकते। जब भी एक कदम आगे बढ़ाते हैं, उसे पान खाना पड़ता है। जिस कारण, ज्यादा से ज्यादा, एक जगह रुक कर ही, काम करते हैं।

राजमहल से बाहर के सब काम, गोसाउन ही करती थी। कोई ज्यादा जरूरी हो, तभी बैरसी, चनाई के साथ बाहर निकलता। ऐसे में, पान का एक बड़ा सा गट्ठर, चनाइ अपने साथ लेकर जाते हैं। हर कदम पर एक पान बैरसी को देते जाते हैं।
इस परेशानी से बचने हेतु, बैरसी एक ही जगह बैठकर, काम करने लगे। जिस कारण लिली, हमेशा साथ ही रहती। वह गोसाउन पर दृष्टि रखती थी।

चनाइ और सुकन्या ने मिलकर एक योजना बनाई।
उन्होंने, गोसाउन को अच्छी तरह से समझा दिया।
योजना के तहत, सुकन्या अपनी बहन गोसाउन को लेकर, अपने पिता से मिलने चली जाती है। लिली गोसाउन की ओर से निश्चिंत होकर, आराम से अपने कमरे में सो जाती है।
इधर चनाई, पान का एक बड़ा सा गट्ठर लेकर, बैरसी से कहते हैं। चलो भाई! नगर भ्रमण करके आते हैं।
बहुत दिनों से आप एक ही जगह बैठकर, थक गये होंगे।
बैरसी कहते हैं कि, हम घर से बाहर कैसे जा सकते हैं? क्या तुम्हें पता नहीं है?
….मेरे ससुर के श्राप के कारण, हम बाहर नहीं निकल सकते। अगर हर कदम पान और हर एक कोस पर किसी स्त्री से बातचीत नहीं करेंगे तो, हमारी मृत्यु निश्चित है।
ऐसे में हम घर से बाहर कैसे निकलें?
चनाइ कहते हैं कि, आप चिंता मत करिए। मैंने सब इंतजाम कर लिया है।
आप निश्चिंत होकर, मेरे साथ चलिए। मैं, आपको कष्ट नहीं होने दूंगा।
बहुत मनुहार करने के पश्चात, बैरसी मान जाते हैं।
ससुर के श्राप के अनुसार, बैरसी हर कदम पर पान खाने हैं। हर एक कोस के बाद एक स्त्री से बातचीत करनी होगी, इस बात को ध्यान में रखते हुए, दोनों भाई नगर भ्रमण के लिए निकल पड़ते हैं।
एक कोस पूरा होने पर, दोनों भाइयों को प्यास लग गई… और बैरसी की भाँग खाने की इच्छा जागृत हो गयी। वहीं पास ही तालाब पर कुछ सहेलियों को पानी भरते देख, बैरसी कहते हैं!
बच्ची, आन पिया गट-गट्।
बच्ची, आन पिया गट-गट्।
सहेलियाँ बैरसी की भाषा को नहीं समझ पाती हैं।
एक सहेली कहती है:-
“गहरे कुएँ का निर्मल पानी, ओ डोलन के ठठ्ठ
में भरू तुम पीना बटोही तो मचिहें गट-गट।”

बैरसी कहते नहीं “बच्ची, आन पिया गट- गट्।”
तब दूसरी सखी कहती है कि;
“नये चुलहा पर गरम कराही ओ घीवन के ठठ्ठ
मैं  छानु तू खाना बटोही तो मचिहें गट-गट।।”

बैरसी कहते हैं; “नहीं बच्ची।आन पिया गट- गट्।”
तीसरी सहेली कहती है;
“लाल पलंग पर, मखमल गद्दा ओ तकिया के ठठ्ठ,
मै सोऊँ तू सोना बटोही, तो मचिहे गट- गट।।”

बैरसी कहते हैं; “नहीं बच्ची।आन पिया गट- गट्।”

उन्हीं सहेलियों में गोसाउन भेस बदलकर रहती हैं।
वो समझ जाती है कि, बैरसी क्या चाहते हैं?
गोसाउन कहती हैं!
“लाल लच्छर के हरी-हरी पत्ती ओ मरिच के ठठ्ठ
मैं  पीसूं  तुम  पीना  बटोही  तो मचिहें गट- गट।।”

बैरसी प्रसन्न होकर कहते हैं;
“हाँ, बच्ची हां सही कही इसी तरह गट गट।।”
गोसाउन भाँग पीस कर बैरसी को देती है।
बैरसी प्रसन्न होकर, भाँग पीकर फिर आगे बढ़ते हैं…
गोसाउन तो आगे जाकर एक कोस पर खड़होड़ में खड़ी हो गयी..।
बैरसी वहाँ जाकर पूछते हैं…
“सीकी फारे कमर झुके कमर तक लटके केश।
ऐसी धनी गर मेरी होती सोने से मढ़ाता भेष।।”
गोसाउन कहती है;
“चक-चक गोर, पान मुख शोभे सर में ‌ओंठिया केश।
ऐसे  पिया जो मेरे होते, सोने  से  सजाती  भेष।।”
बैरसी आगे बढ़ गये…।
तीसरे कोस पर गोसाउन, गोबर के उपले बना रही थी।
बैरसी कहते हैं;
“उपले थापये चटपटी मुख पर लटके केश,
कनखी देखे छन-छन गोरी, फिर भी सुन्दर भेष।।”
गोसाउन कहती हैं;
“पान खाय मुख फेरय डंडा, हाथी मार बने बलवान।
सिंह मार करे शिकार, ऐसे पुरुष हैं मेरे भरतार।।”

बैरसी आगे बढ़ जाते हैं और मन ही मन डरने लगते हैं। पता नहीं किस स्त्री को टोकने से, बात बढ जाए।
फिर भी ससुर के श्राप के कारण हर कोस पर एक स्त्री को तो टोकना ही है।
चौथे कोस पर गोसाउन, भेस बदलकर खड़ी रहती है।
बैरसी कहते हैं;
“पतली- दुबली तू धनी, फ़ूल  सी सुकुमार।
बस  हवा  के  तेज  से तू कहीं  उड़ ना जाए।।”
क्रमशः                        अम्बिका झा 👏

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