“गोसाउन का विवाह”
“मध्यस्थ नामक एक राजा थे।
उनको एक सौ आठ रानियों से एक सौ आठ पुत्रियाँ थी।
बड़ी बेटी का नाम गोसाउन था…।
सभी बहनें एक से बढ़कर एक सुन्दर, सुशील और संस्कारी थीं।
वे सभी परस्पर प्रेम, विश्वास और सामंजस्य के साथ रहती थीं।
जब कन्याएँ विवाह योग्य हुईं तो, उनके पिताश्री ने चाहा कि, किसी राजा के एक सौ आठ पुत्र हों तो, उन्हीं के एक सौ आठ पुत्रों के साथ, अपनी एक सौ आठ पुत्रियों का विवाह सम्पन्न करुँ…।जिससे सभी बहनों का साथ ना छूटे।
उधर, एक दिन राजा नाहर, अपने कुछ सैनिकों के साथ शिकार खेलने, जंगल में जाते हैं।
जहाँ वे एक बहुत ही सुन्दर हिरनी को देखते ही, उस पर मोहित हो जाते हैं। वह उस पर बाण चला देते हैं।
बाण जा कर हिरनी को लगने ही वाला होता है कि, तभी कोई बालिका, हवा के वेग से हिरनी को बचा लेती है।
इतनी सुन्दर और निडर बालिका को देख कर, राजा अचंभित रह जाते हैं।वह उससे पुछते हैं कि, तुम ने मेरे द्वारा चलाए गए बाण से, हिरनी को क्यों बचाया?
तुम कौन हो और इस घने जंगल में क्या कर रही हो?
मैं, मध्यस्थ राजा की पुत्री गोसाउन हूँ। मैं अपनी बहनों के साथ खेलने आई थी।
अचानक हिरनी की तरफ आते तीर को देखकर, मैं स्वयं को रोक नहीं पायी। इसीलिए उसे बचाने आ गयी…। परन्तु आप तो एक राजा हैं। धन-धान्य से परिपूर्ण, नौकर-चाकर, हाथी, घोड़े, आपके पास किसी भी वस्तु की कोई कमी नहीं है।
आप अपने राज्य के पालक हैं।
फिर क्षणिक सुख के कारण इस बेजुबान जानवर को क्यों मार रहे थे?
यदि आप किसी को जीवन नहीं दे सकते तो, किसी की जान लेने का हक आपको किसने दिया?
गोसाउन के रूप और पराक्रम को देख कर राजा नाहर पहले ही बहुत खुश हो गए थे तथा निडरता से पूछे गए सवाल से राजा नाहर निरूतर हो गए।
राजा नाहर ने, गोसाउन से क्षमा मांगते हुए, उसे ढ़ेर सारा आशीर्वाद भी दिया।उनके मन में गोसाउन को अपनी पूत्रवधू बनाने की लालसा जागृत हो गयी।
संयोगवश राजा नाहर के सौ आठ पुत्र थे और वो भी अपने पुत्रों के लिए योग्य बहुओं की तलाश में थे।इतनी सुन्दर, पराक्रमी और निर्भय पुत्र वधू पाने की लालसा में, राजा नाहर अपने पुत्रों के विवाह के विषय में बात करने के लिए, राजा मध्यस्थ के पास पहुंचे…।
राजा मध्यस्थ को तो स्वयं ऐसे राजकुमारों की तलाश थी। जो एक सौ आठ भाई हों।इसलिए उन्होंने इस प्रस्ताव को सहर्ष स्वीकार कर लिया और कहा! अगर आप अपने एक सौ आठ पुत्रों का विवाह, मेरी एक सौ आठ पुत्रियों के साथ करवाने के लिए तैयार हैं तो, हमें कोई शंका नहीं है।
सुयोग्य पुत्रवधू की लालसा में, राजा नाहर ने उन्हें यह नहीं बताया कि, उनका बड़ा पुत्र बैरसी शादी कर चुका है।दोनों राजाओं ने एक-दूसरे के साथ बात करने के बाद, विवाह की तिथि निश्चित कर दी। तत्पश्चात राजा नाहर अपने राज्य में वापस लौट आए और विवाह की तैयारियों में जुट गए।
बैरसी ने विवाह करने से मना कर दिया…।
इस पर राजा नाहर ने बैरसी से कहा! तुम एक साँप से शादी करके आए हो।
जिसे धर्म, संस्कृति, इज्जत, मान-सम्मान और संस्कारों की कोई भी जानकारी नहीं है।
ना ही वो घर गृहस्थी के बारे में कुछ भी जानती है।
तुम्हारे मना करने के कारण गोसाउन जैसी सर्वगुणी पुत्रवधू को हम नहीं खो सकते। इसलिए तुम्हें यह विवाह करना ही होगा।विवाह से पहले इस बात का ध्यान भी रखना होगा कि, राजा मध्यस्थ को यह जानकारी नहीं होनी चाहिए कि, तुम्हारा विवाह पहले ही हो चुका है।
दोनों राज्यों में भव्य समारोह आयोजित किया गया।
चारों ओर खुशियाँ और उत्साह दिखाई दे रहा था।
दोनों राज्यों को, फूलों के तोरणद्वारों से सजाया गया।
अतिथियों के स्वागत की भव्य तैयारियाँ की गई थीं।
सभी देवताओं को निमंत्रित किया गया…।
पूरे विधि-विधान और हर्षोल्लास के साथ विवाह संपन्न हुआ।
सभी देवताओं ने भाग्यशाली होने का आशीर्वाद दिया…।
तभी अचानक राजकुमार बैरसी के माथे पर बांधे हुए साफे (पाग) में से एक नागिन नीचे गिर जाती है। नागिन, वहाँ फैले हुए, धान के लावा को खाने लगती है।
सभी लोग डर जाते हैं और विवाह समारोह में हड़कंप मच जाता है। सभी लोग साँप को मारने के लिए डंडा लेकर आ गए।
तभी बैरसी ने कहा! इसे मत मारिये। ये हमारी पहली पत्नी ‘लिली’ है। जिसे सुनकर राजा मध्यस्थ को बहुत आश्चर्य हुआ कि, ये सब उनसे छुपाया गया था। अर्थात, उन्हें धोखा दिया गया था।
इसलिए क्रोधित होकर राजा मध्यस्थ ने बैरसी को श्राप दे दिया। “डेगे बिरिया,कोसे तिरिया…।” अर्थात तुम हर कदम चलने के बाद, एक पान खावोगे और हर एक (कोस) चलने के बाद, किसी स्त्री से बातचीत (हंसी-मजाक) करोगे तो ही, जीवित रहोगे। अगर ऐसा नहीं किया तो तुम्हारी मौत निश्चित है।
विवाह के बाद कोवर मिलन की विधि के समय भी, जैसे ही गोसाउन और बैरसी कोवर मिलन करने वाले होते हैं, लिली बैरसी के कंधे पर लटक जाती है।
गोसाउन खुद पीछे हट जाती है।
कोवर मिलन जैसे-तैसे करवाने के बाद, वर-वधू के (महूअक) भोजन के समय, थाल में परोस कर रखी सामग्री, जैसे खीर, दूध, मिठाई और फल आदि को लिली
बैरसी के साथ गोसाउन को नहीं खाने देती। वह स्वयं खाने लगती है।
गोसाउन अपने माता-पिता को और दुःखी नहीं करना चाहती थी। वह इसलिए चुपचाप सब सहन कर सहती रहती है।
विवाह उपरांत हर विधि-विधान में लिली बैरसी के साथ रहती है। जिस कारण गोसाउन स्वयं को बहुत अपमानित महसूस करती है। परन्तु माता-पिता के सम्मान के लिए, अपनी बाकी बहनों के खुशहाल भविष्य के कारण, चुपचाप अपमान का घूंट पी कर रह जाती है।
रात्रि में सोने के लिए राजा ने एक सौ आठ कोवर सजवाये। सारे कमरों को फूलों से सजाया और इत्र से सुगंधित करवाया। बेटी-जंवाई से विश्राम करने के लिए कहते हैं।गोसाउन की सहेलियां, गोसाउन और बैरसी को कोवर में छोड़ कर आती हैं।
तभी लिली आकर पूरे कमरे के फूलों को बिखेर कर, बैरसी के साथ सो जाती है।
गोसाउन चुपचाप वहाँ से चली जाती है।
इसी प्रकार सातवें दिन, वर-वधू को लेकर अपने राज्य वापस आ जाते हैं।चलिए , जानते हैं अगले भाग में बैरसी को अपने ससुर से मिले श्राप और पिता के सर्वगुण संपन्न बहू की लालसा में बोले गये झूठ के कारण, और कितना नुक्सान उठाना बाकी है।
क्रमशः
Bahut si acha bhag tha