“भागीरथी गंगा”

“भगवान विष्णु भागीरथ से कहते हैं! तुम ब्रह्मा जी के पास जाओ। गंगा ब्रह्मा जी के कमंडल में निवास कर रही हैं।
भागीरथ ब्रह्मा जी की तपस्या करने लगे।
ब्रह्मा जी प्रसन्न होकर भागीरथ को गंगा जल पीपल के पत्तों के पात्र में दे देते हैं।
ब्रह्मा जी भागीरथ से कहते हैं! ध्यान रहे। तुम जिस स्थान पर गंगाजल रखोगे, वहां से फिर इन्हें संभाल पाना असम्भव है। फिर ये अपनी राह खुद बनाएंगी। फिर गंगा उधर ही जाएंगी, जिधर इनका मन होगा। फिर तुम इन्हें अपने साथ, नहीं ले कर जा पाओगे।
इसलिए तुम गंगा को वहीं रखना, जहां तुम इन्हें लेकर जाना चाहते हो।
भागीरथ गंगा को लेकर वहां से निकल पड़े। कुछ ही समय बाद गंगा का भार बढ़ने लगा। जब सूरज सर पर आने लगा तो भागीरथ थकने लगे। ऐसा महसूस हुआ अब वह गंगा को अपने हाथों मे ज्यादा देर तक नहीं रख पाएंगे।
तभी उन्हें जह्नु ऋषि का आश्रम नजर आया।
भागीरथ जह्नु ऋषि से आज्ञा लेकर गंगा जल वही रख देते हैं।
गंगा अचानक ही पीपल के पात्र से बाहर आ तीव्र प्रवाह से आगे बढ़ने लगी।

जह्नु ऋषि को लगा, अगर उन्होंने तक्षण कुछ नहीं किया तो, गंगा उनकी कुटिया को बहा ले जाएंगी।
जब उन्हें अपने बचने का कोई विकल्प नजर नहीं आया तो, वो गंगा को पी गए।
जब भागीरथ ने पूछा, तब ऋषि ने कहा कि यह कुटिया के साथ मुझे भी बहा ले जातीं।
इसलिए मैंने इन्हें पी लिया है।
अब भागीरथ जह्नु ऋषि की सेवा में लग गए।
कैसे भी गंगा जल उन्हें प्राप्त हो।
जह्नु ऋषि, सेवा से प्रसन्न होकर भागीरथ से कहते हैं!
एक शर्त पर मैं गंगा को तुम्हारे साथ विदा करूंगा।
आज से गंगा जह्नु ऋषि पुत्री के नाम से विख्यात होंगी अर्थात,जाह्नवी कहलाएंगी।
“तीव्र प्रवाह” भार यह पृथ्वी संभाल नहीं पाएगी। इसलिए गंगा को संभालने के लिए महादेव को मनाना होगा।

भागीरथ, महादेव को ढूंढने लगे तो, उन्हें ऋषि ने बताया, वह गुफा में तपस्या कर रहे हैं। भागीरथ जब उस गुफा में पहुंचे तो महादेव किसी तपस्या में लीन थे। इस तरह लीन थे कि, उनके पूरे शरीर पर जंगली सांप और बिच्छू का भरमार थी। भागीरथ एक-एक कर सारे जंगल को साफ कर, कीट पतंग, सांप और बिच्छूओं को एक-एक कर हटाते गए। यह सब हटाते-हटाते पूरे 6 माह बीत गये।
महादेव के नेत्र पर कुश का पौधा उग गया था।
भागीरथ जैसे ही महादेव के नेत्र से कुश को उखाड़ते हैं,महादेव तपस्या से जाग जाते हैं और पूछ्ते हैं।

तुम कौन हो और किस प्रयोजन से तपस्या में विघ्न डालने आए हो?
भागीरथ, महादेव को साष्टांग प्रणाम करते हुए क्षमा मांगते हैं। फिर आने का प्रयोजन और पूरा वृतांत बताते हैं।
महादेव जो अंतर्यामी हैं। भागीरथ से कहते हैं, ठीक है। मैं अपनी जटाओं में गंगा को रख लूंगा।
अगर गंगा की अनुमति हो तो।
तत्काल भागीरथ, महादेव के साथ ,जह्नु ऋषि के आश्रम पहुंचते हैं।
जह्नु ऋषि, (जाह्नवी) गंगा का विवाह महादेव से करवा कर गंगा को विदा करते हैं।
महादेव, गंगा को अपनी जटा में समेट लेते हैं।
तभी कुछ बूंद धरती पर गिर पड़ीं और भागीरथ के साथ गंगा पहाड़ों को चीरती ‌हुई तीव्र गति से पृथ्वी पर आने लगी।
रास्ते में हाट लगी हुई थी
और काफी भीड़ थी। भागीरथ ने सोचा, इस तरह तो सब लोग गंगा के बहाव में बह कर मृत्यु को प्राप्त होंगे।
इसलिए तीव्र वेग को देखते हुए भागीरथ आगे आगे भागते हुए कहते जा रहे थे।

भागो भागो बनिया, भागों साहूकार।
इस राह से आ रही हैं सुरसरी धार।।

कुछ लोग तो भाग गए और उनकी जान बच गई।
परन्तु, कुछ लोग नहीं माने और उन्होंने कहा!

छोटा सा तू भागीरथ छितनी कपार
तेरे बुलाएं ही आएंगी? सुरसरी धार।।

और उन सबको अपने बहाव में बहाती हुई गंगा,
गंगा द्वार से होते हुए हरिद्वार फिर सगर वंशज साठ हजार पुत्रों की राख को डुबो दिया।
सगर वंशजों को मुक्ति मिल जाती है। धरती ताप से मुक्त हो जाती है।
फिर भागीरथ को गंगा जी कहती है!
मैं तुम से बहुत प्रसन्न हूं। मांगों तुम को क्या वरदान चाहिए? फिर मैं वैकुंठ धाम को वापस जाउंगी।
भागीरथ कहते हैं। अगर आप कुछ देना ही चाहती है तो, आप पृथ्वी पर हमेशा-हमेशा के लिए रह जाइए। यहां से वापस मत जाइए।
जिस तरह मेरे कुल को मोक्ष प्राप्त हुआ है, इसी प्रकार धरती पर रह कर, यहां के हर वासी को पाप मुक्त कर मोक्ष प्राप्त करने का सौभाग्य दीजिए।

इस तरह मां गंगा भागीरथी गंगा के नाम से विख्यात हुई।
                  अम्बिका झा ✍️

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