“एक घनघोर वन में एक ऋषि रहते थे। वहीं एकांत में अपनी कुटिया बनाकर जप तप करते थे। बाहरी दुनिया से उन्हें कोई मतलब नहीं था। बचपन से ब्रम्हचर्य व्रत का पालन करते आ रहे थे। किसी स्त्री पर उनकी नजर न पड़े इसलिए तो उन्होंने गांव समाज से दूर वन में रहने का निर्णय लिया था। लेकिन कहते हैं ना विधि के लेख को कौन मेट पाया है। उनकी कुटिया के पास एक आम का बहुत ही विशाल पेड़ था। उस पर एक मैना रहती थी। रोज ऋषि के क्रिया कलापों को ध्यान से देखती थी। ऋषि के चेहरे का तेज़, भक्ति भाव में संलग्नता, उस चिड़िया को मोहित करने लगी। वो सोचने लगी प्रभु की ऐसी कृपा हो इसके अंत समय में इसका कोई अपना इसके पास हो। फिर वो चिड़िया सोचती, ऋषि ने तो समाज को त्याग कर वन में रहना स्वीकार किया है तो, इस निर्जन वन में भला इनके पास कौन रहेगा। उस चिड़िया, जो कि मैना थी। उसने मन ही मन उसी कुटिया के समीप रहने का प्रण ले लिया। उसी आम के पेड़ पर अपना घौंसला बनाकर रहने लगी। वर्षा ऋतु में ऋषि के लघु शंका करके जाने के बाद, मैना ने उस जल को पी लिया। उसके उपरांत उसे गर्भ ठहर गया । ऋषि के तप के प्रभाव से मैना ने एक सुंदर कन्या को जन्म दिया। कुटिया के आसपास किसी के ना होने के कारण ऋषि ने उस कन्या का पालन पोषण किया। मैना की संतान होने के कारण उसका नाम मैना रखा गया। मैना अपने पिता के साथ ही उस वन में रहने लगी। ऋषि ने पढ़ाई लिखाई के साथ ही, अस्त्र शस्त्र का भी ज्ञान देना आरंभ कर दिया। गृह कार्य तो मैना ऐसे करती जैसे वो इसी काम के लिए बनी हो। हर कार्य में निपुण देखकर, ऋषि बहुत खुश होते। फिर उन्हें चिंता भी होती, मेरे बाद मैना कहां और किसके साथ रहेगी। ऐसे ही मैना, बारह वर्ष की हो गई। ऋषि को मैना की शादी की चिंता सताने लगी। हिमालय ऋषि जो कि एक राजा थे, उनसे जब ऋषि ने मैना से विवाह के लिए कहा तो हिमालय ऋषि सहर्ष मान गए। बहुत ही धूमधाम से ऋषि ने मैना और हिमाचल ऋषि का विवाह करवा दिया।
लघु-शंका मिश्रित जल पीने की वजह से उनकी उत्पत्ति हुई थी, जिस कारण बहुत वर्षों तक उन्हें संतान प्राप्ति नहीं हुई। सब लोग उनसे दूर दूर रहने लगे। नि:संतान होने के कारण बहुत अपमानजनक स्थिति हो गई। फिर वो भगवान के दरबार में गए। जहां सभी देवताओं की सभा लगी थी। हिमाचल ऋषि ने अपनी सारी व्यथा सुनाई।
वहां भी सारे देवता उनका मजाक उड़ाने लगे। उन्हें बैठने के लिए आसन ना देकर, नीचे जमीन पर बैठने को कहा। उनके वहां से उठते ही, उन्होंने वहां की मिट्टी निकलवा कर फिंकवा दी। यह कह कर कि नि:संतान यहां बैठा था। उसके पाप कर्मों से वह मिट्टी अशुद्ध हो गई है।
इतना अपमान होने के बाद भी उन्होंने संतान प्राप्ति के मोह में सभी देवताओं से प्रार्थना की। फिर विष्णु जी ने पूछा, सात सुख का बेटा चाहिए या सात सुख के बेटी। बताओ। उन्होंने कहा, सात सुख का बेटा चाहिए। तभी महादेव ने सोचा अगर इन्हें बेटा हुआ तो मैं विवाह किसके साथ करुंगा। महादेव बोले नहीं, तुम पहले अपनी धर्मपत्नी से पूछ कर आओ।
दूसरी तरफ़ महादेव नारी के वेश में मैना के पास पहले ही आ पहुंचे। महादेव ने मैना को अच्छे से समझाया कि अगर तुमने बेटा मांगा तो, किसी के घर में चोरी करेगा। किसी के पेड़ से फल तोड़ेगा। किसी से लड़ाई झगड़ा करेगा। हमेशा तुम्हें उलाहने मिलते रहेंगे।
इससे अच्छा है तुम बेटी मांगना। घर के सारे काम भी करेगी और तुम्हें कन्यादान करने का सौभाग्य प्राप्त होगा। तुम्हारे साथ बैठकर तुम से गृहकार्य सीखेगी। जिससे तुम्हारा अकेला पन भी दूर होगा। तुम उसके साथ मिलकर गीत नाद गाओगी। उसके ससुराल से अच्छे अच्छे पकवान आएंगे। जो तुम समाज में बांटोगी तो तुम्हारे सभी मनोरथ पूर्ण होंगे। जो कि बेटा होने से नहीं होंगे। बेटा तो पढ़ाई लिखाई खेल कूद में उलझा रहेगा।
हिमालय ऋषि के पूछने पर मैना ने कहा हमें कन्या चाहिए। हिमाचल ऋषि ने ईश्वर के दरबार में जाकर विष्णु भगवान से कन्या होने का वरदान मांगा। विष्णु ने तथास्तु कहकर वरदान दे दिया।
मैना के घर में कोई नहीं था। हिमालय ऋषि अपने राज काज में उलझे रहते थे। जिस कारण नारी के रूप में महादेव स्वयं ही हिमालय ऋषि के राजभवन के नजदिक ही एक कुटिया में रहने लगे और मैना की देखभाल करने लगे।
रोज विभिन्न प्रकार के व्यंजन बना कर लाते और मैना को खाने के लिए कहते।
कभी कभी चुटकुले सुनाकर हंसाते तो कभी ग्रंथ पढ़कर सुनाते। कभी लोक परलोक की बातों में उलझाकर छोड़ देते तो कभी कभी मैना के मां बाप का कोई ठिकाना नहीं कहकर गाली और तानों से मैना को रुला भी देते। महादेव जो कि एक स्त्री के रूप में मैना के आसपास ही रहते थे।
कहते तुम अगर उस ऋषि की पुत्री हो तो वो ऋषि तुम्हारी खोज खबर क्यों नहीं लेता। स्त्री का पहली संतान तो मायके में होनी चाहिए। फिर स्वयं ही कहते, वैसे तुम्हारे मायके में तो कोई है ही नहीं। तुमको कौन लेकर जाएगा। वो तपस्वी स्वयं का ख्याल रखले वही बहुत है।
तुम्हारा ख्याल वो कैसे रखेगा।
ऐसे ही खट्टी मीठी नोंक झोंक में वक्त हंसते हंसाते बीत गया। आखिर नवें माह में ‘मैना’ ने एक सुंदर कन्या को जन्म दिया।
जन्म के समय ही बच्ची बोलने लगी। महादेव से शादी करनी है। उसका नाम उमा रखा गया। क्रमशः
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सुन्दर
Bahut shandar