.भागीरथी गंगा.

“सगर राजा की दो पत्नियां थीं। वैदर्भी, और शैव्या
दूसरी पत्नि शैव्या से असमंजस नामक पुत्र ने जन्म लिया।
पहली पत्नी कोई सन्तान ना होने के कारण, सन्तान प्राप्त करने के उद्देश्य से, महादेव की तपस्या करने लगी।
सौ वर्षों की तपस्या के उपरांत एक पुत्र ने जन्म लिया। जो केवल एक लोथड़ा मात्र दिखाईं दे रहा था।
किसी भी अंग का कोई सही आकार ना देखकर,
वैदर्भी, महादेव को स्मरण करते हुए रोने लगी।।
महादेव आप ने हमें यह क्या दिया है? यह कैसा वरदान है? जिसका कोई आकार नहीं। मानवीय बच्चा है या कोई जानवर ज्ञात नहीं हो पा रहा है।
आपने जरूर हमारे, पूर्व जन्म के पाप का फल, हमें इस जन्म में दिया है।अब मैं इस पाप के साथ अपने परिजनों को कैसे मुंह दिखाऊंगी?
इसलिए मैं आज़ अपने प्राण त्याग करती हूं।
ऐसा कहकर वैदर्भी ने अपना मस्तक ज्यों ही पटकना चाहा,
महादेव तपस्वी ब्राह्मण के वेश में आ पहुंचे।

उन्होंने उस लोथड़े को, साठ हजार टुकड़ों में, परिवर्तित कर दिया।
साठ हजार मिट्टी के पात्रों को सरसों के तेल से भरकर, उसमें साठ हजार टुकडों को रख कर ढ़क्कन से बंद कर रख दिया। कुछ महीनों के उपरांत साठ हजार टुकड़े, साठ हजार् पुत्रों में परिवर्तित हो जाते हैं।
जो बलवान, रुपवान, हर शिक्षा में निपुण, राज कुमार थे। सगर राज़ा अपने साठ हजार पुत्रों को पाकर आनंदित हुए।।

“राजा सगर” “99”अश्वमेध यज्ञ कर चुके थे। वह सौवें यज्ञ की तैयारी में जुट गए।।

जब इन्द्र को इस बात का आभास हुआ तो, उन्होंने सोचा।
सौ अश्वमेध यज्ञ करने के उपरांत राजा शतक्रतु इन्द्र बन जाएंगे। इसलिए कोई ऐसा उपाय करना चाहिए, जिससे इनका यज्ञ भंग हो जाए। वो यह यज्ञ ना कर पाएं।
जब अश्वमेध यज्ञ का घोड़ा छोड़ा गया।
उसकी देखभाल में राजा सगर ने, साठ हजार पुत्रों को भेज दिया।
इन्द्र ने छलपूर्वक घोड़े को ले जाकर, कपिल मुनि के आश्रम में बांध दिया। क्योंकि वह धरती के अंदर गुफ़ा में तपस्या करते थे। कोई उनकी तपस्या में बाधा उत्पन्न न करे, इस लिए वह छुप कर ऐसा कर रहे थे।
इन्द्र को यह भली भांति ज्ञात था कि, अगर कपिल मुनि क्रोध में अपनी दृष्टि खोलेंगे तो, सामने वाला जल कर भस्म हो जाएगा।

जब पूरे संसार में कहीं भी यज्ञ का घोड़ा नहीं मिला तो, सगर पुत्रों ने जमीन को खोदना शुरू कर दिया। कुछ ही दिनों में उन्हें कपिल मुनि के आश्रम में घोड़ा मिल गया। सगर पुत्रों को यही लगा कि, हमारे घोड़े को यह तपस्वी ही चुरा कर ले आए हैं। अर्थात, यह तपस्वी राजा सगर को युद्ध के लिए आमंत्रित कर रहे हैं।।

सगर पुत्रों को बहुत क्रोध आ गया और ललकारते हुए कपिल मुनि की ओर बढ़ने लगे।
सगर पुत्र कहते हैं ओ तपस्वी! क्या तुम को भय नहीं लगा? सगर के साठ हजार पुत्रों से?
तुम्हारा दुस्साहस इतना बढ़ गया? तुम ने सगर राज़ा के यज्ञ के घोड़े रोक कर बांध लिया।
तुम सगर राजा को युद्ध के लिए आमंत्रित करते हो! ऐसा कहते हुए, जब सगर पुत्रों ने धरती पर अपने कदमों को एक साथ रखते और उठाते हुए आगे बढ़ रहे थे तो धरती और आकाश थर्राने लगे। कपिल मुनि का आश्रम डोलने लगा।
जिस कारण कपिल मुनि का तप भंग हो गया।
उन्होंने मन ही मन विचार किया। यह जो सगर पुत्र हैं इनको इतना अभिमान किस बात का है?
मुझपर मिथ्या आरोप लगा कर मेरा अपना कर रहे हैं।
क्रोध में आकर उन्होंने अपनी आंखें खोल दीं। जिससे सारे सगर पुत्र तत्काल जल कर भस्म हो गए।

इधर हिमालय राजा की तीसरी पुत्री गंगा, जब विवाह योग्य हुई तो, महादेव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए, किसी निर्जन स्थान पर तपस्या करने लगी। क्रमशः
               अम्बिका झा ✍️

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