“दोनों मां बेटी अश्रु भरे नयनों से एक दूसरे को देखती रहीं। जब तक दृष्टि से ओझल नहीं हो गई।।
ससुराल में जब इतने सामान के साथ आई तो,
सास बहुत खुश हुई। बहू को स स्नेह घर में लेकर गई।
बाल बसंत का सत्कार भी ऐसे किया, जैसे कहीं के राजकुमार हों। सही मायने में बाल बसंत का आतिथ्य सत्कार, आज ही हुआ था।
बाल-बसंत सोचते हैं। क्या यही है इंसानी परंपरा?
जब खाली हाथ बहन की विदाई कराने आए तो, किसी ने पानी भी नहीं पूछा। अभी जब भेंट लेकर आए हैं तो, इतना सत्कार।
कुछ वक्त बाद बाल बसंत बहन से विदा लेकर वापस आ गए। तब नागराज छोटी बहू को डसने के उद्देश्य से उसके घर में जाकर छुप गए।जब गृहकार्य से निपट कर, छोटी बहू सोने के लिए आईं तो, पैर हाथ थोकर पहले मां के द्वारा बताए गए, मंत्रों का जाप करने लगी।“दीप दिपहरा जाथ धरा। मोती-माणिक भरे घड़ा।
नाग बढ़े नागिन बढ़े। पांच बहिन बिसहरा बढ़े।।
बाल बसंत भैया बढ़े। डाढ़ी-खोंढ़ी मौसी बढ़े।
आशावरी पीसी बढ़े। बासुकी राजा नाग बढ़े।।”
बासुकिनि माय बढ़े। खोना-मोना मामा बढ़े।
राही शब्द ले सोऊं। कांसा शब्द ले उठूं।।
होते ही प्रातः सोना कटोरा में दूध-भात खाऊं।
सांझ सोऊं प्रात उठूं, पटोर पहिरूं कचोर ओढ़ूं।।ब्रम्हाक दिया कोदाल, विष्णु चांछल बाट।
भाग-भाग रे कीड़ा-मकोड़ा
इसी राह आएंगे ईश्वर महादेव,
पहल गरूड़ का ढ़ाठ।
आस्तीक, आस्तीक, गरूड़, गरूड़।।”नागराज ने सुना, यह कन्या तो हमारे ही वंश के लिए ईश्वर से आशीर्वाद मांग रही हैं।मेरे ही बेटों को आशीर्वाद दे रही। मैं इसे कैसे डस सकता हूं।
ऐसा सोचकर नागराज वापस को लौट गए।
घर जाकर उन्हें याद आया कि उस इंसानी कन्या ने मेरा मस्तक जला दिया, जो लहर रहा है।
यह सोचकर उन्होंने कल जरूर जाकर डस लूंगा ऐसा सोचकर सो गए।।
दूसरे दिन वापस जब वो आए तो, उन्होंने देखा। छोटी बहू की सास उसके साथ, अच्छा व्यवहार नहीं करती।
कहती हैं जब तक मायके नहीं गई थी, तब तक तो सब काम सही से करती थी। अब आलस्य आ गया।
ऐसा मत समझना कि तुम्हारे मायके वालों ने इतना धन दिया है तो तुम को काम नहीं करना होगा।
क्या तुम्हारे पिता ने नौकर भेजा है, जो सब कार्य करेगा।
स्वाभाविक उनके मन में पितृ स्नेह उत्पन्न हो गया और अपना लक्ष्य भूल गए कि वो डसने आए थे।
दूसरे दिन भी छोटी बहू ने सोने से पहले वही मंत्र पढ़ना शुरू कर दिया।
जिसे सुनकर नागराज पुनः वापस चले गए।
घर आने पर व्याकुलता से नागिन पूछती है। आप देर रात्रि तक कहां रहते हैं?
उन्हें अंदेशा होता है कहीं ये ऊनकी मानक बेटी को डसने तो नहीं चले गए थे? मन अंजानी आशंकाओ से घिर जाता है।
नागराज कहते हैं।
मैं उस इंसानी कन्या को डसने ही गया तो था। किंतु वहां उसकी सास के प्रताड़ना को देख कर, मेरे मन में क्षणिक पल के लिए दया उत्पन्न हो गयी।
इसलिए आज नहीं डस पाया। किंतु कल अवश्य डस लूंगा।। नागिन मन ही मन ईश्वर का धन्यवाद करते हुए सो गई।
तीसरे दिन प्रातः ही बाल बसंत से कहलवा भेजा कि, रात्रि सोते समय दरवाजे के निकट ही कटोरे में दूध भात रख दे।
दूध में नमक अवश्य मिला दे।
कहते हैं, जिसका नमक खा लेते हैं, उसका अहित नहीं करते।।
मां अपने बच्चों की सलामती के लिए अपने ही पति से छल कर जाती है।।
शाम को जब नागराज आंतें है तो, घर के बाहर से सुगन्धित फ़ूल एवं गुग्गुल की सुगंध से आनंदित हो उठते हैं।
घर के दरवाजे पर ही दूध भात देखकर स्वयं को रोक नहीं पाते।वह उस दूध को पी लेते हैं।
नमक का स्वाद आते ही छोटी बहू की चतुराई पर उन्हें फख्र होने लगता है कि वो, इनकी ही बेटी है।।
वह घर में प्रवेश करते ही सुनते हैं कि वह उनके ही वंशज एवं परिवार के हर सदस्यों की हितैषी है। जो मायके की सुरक्षा में मंत्र को पढ़ना कभी नहीं भूलती।
खुश होकर, अपनी पूंछ को तीन बार उसके घर में पटक कर, उसके घर को धन-धान्य से भरकर, मन ही मन बेटी को क्षमा कर देते हैं। बेटी को आशिर्वाद देते हुए लौट जाते हैं।
बेटी को खुशहाल बना कर चले जाते हैं। जिससे भाई और मां भी सच्चाई जान कर खुश हो जाते हैं कि नागराज ने छोटी बहू को क्षमा कर दिया है तथा खुशहाल एवं मालामाल कर दिया है।।”अम्बिका झा ✍️
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Kya bat hai bahut sundar