“उसके पति ने कहा….
तुम एक काम करो। इस खीर पूरी को यहीं जो बहुत बड़ा पाकड़ का पेड़ है, उसी के धोधरी ( कोटर ) में रख दो।
मेरी मां को जीभ दिखाकर आओ। फिर भोजन कर लेना।।
छोटी बहू ने ऐसा ही किया।जब वो सास को जिह्वा दिखा कर आईं तो उस पेड़ के सुराख में खीर पूरी ढूंढने लगी। किंतु उसे खीर पूरी नहीं मिली तो, उसने कहा!
“आशा हुई निराश
पाकड़ हुआ पलाश।
जिसने खाया मीठा भोजन उनकी पूरी आस।।”

ऐसा तीन बार कहकर, वो निराश होकर अपने भाग्य का लिखा समझ कर घर की ओर चली गई।।
उसी वृक्ष के नीचे नाग-नागिन का बसेरा था।
वो नागिन भी गर्भवती थी।
उसे जब खीर की सुगंध आई तो उसने खीर खा ली थी।
कुछ वक्त के उपरांत उस नागिन ने दो पुत्रों (नाग) को जन्म दिया।जो वहीं खेत में खेलने लगे।
दोनों का नाम बाल और बसंत रखा गया।
एक दिन दो सांपों को खेत में खेलते देखकर चरवाहों ने उन्हें मारना चाहा।
सांप छोटी बहू के खेत की ओर भागा। जब छोटी बहू ने देखा, दो सांपों के पीछे कुछ चरवाहे डंडा लेकर भाग रहे हैं तो उसने खेत की आरी ( मेंड़ ) पर बैठकर अपने आंचल से दोनों सांपों को छुपा दिया।
जब चरवाहों ने नजदीक आकर पूछा कि दो सांपों का जोड़ा इसी ओर भागते हुए आया था। क्या तुम ने देखा है?
तो छोटी बहू ने कहा, हां! वो उस ओर गया है। मैंने देखा है।
चरवाहे जब दूसरी ओर चले गए तो उसने आंचल हटाकर सांपों को जाने दिया।
घर आकर बाल-बसंत ने अपनी मां से कहा, मां! आज तो हमें चरवाहे मार ही देते।
इसी खेत में जो वो किसान काम करता है, उसकी पत्नी ने हमें बचा लिया।
हमें अपने आंचल से ढक कर चरवाहों को दिशा से भटका दिया।
इसलिए हमारा प्राण बच गए।
नागिन कहती है!
आज़ उस स्त्री ने तुम्हारे प्राणों की रक्षा कर बहुत बड़ा उपकार किया है।
कुछ वक्त पहले हमने भी उसके हिस्से का भोजन कर उसे निराश किया था।
अब वक्त आ गया है, उसका उपकार उतारने का।
तुम मानव भेस में जाकर उस स्त्री से पूछो उसे क्या चाहिए?
उसकी इच्छा के अनुसार उसे बहुत सारा धन मणी माणिक्य देकर उस स्त्री को प्रसन्न करो।
बाल-बसंत दूसरे दिन बगीचे में घूमने के बहाने, इंसान रुप में, उस छोटी बहू के पास आये।
उन्होंने कहा! कल तुम ने हम दोनों भाइयों के प्राणों को बचा कर बहुत बड़ा उपकार किया है।
तुम मांगो। हम तुम्हारी इच्छा  पूर्ण करने के उद्देश्य से ही तुम्हारे पास आए हैं।
छोटी बहू ने कहा। नहीं, नहीं मैंने ऐसा कोई उपकार नहीं किया है। जीव हत्या पाप है। मैंने तो बस उस पाप को होने से रोका है।
बदले में हमें कुछ नहीं चाहिए। ‌
बाल-बसंत के बार-बार अनुरोध करने पर छोटी बहू कहती है।
ठीक है। अगर आप हमें कुछ देना ही चाहते हैं तो, हमें मायके का बहुत शौक है।
हमारे मायके में कोई जीवित नहीं बचा। जिस कारण मुझे मायके का सुख प्राप्त नहीं होता।
बाल-बसंत कहते हैं, ठीक है। हम कल ही आपके ससुराल आकर आप को अपने साथ बहन बनाकर अपने घर ले चलेंगे।
क्रमशः
अम्बिका झा ✍️

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