“गणेश जन्म”

“गौरी खिन्न रहने लगी। उनके स्वाभाव में चिड़चिड़ापन उत्पन्न हो गया। वह रूष्ट रहने लगी।
महादेव कहते हैं! गौरी, आपको ऐसा कौन-सा कष्ट है? आप इस तरह का व्यवहार क्यों कर रही हैं? आप नाराज़ क्यों रहती हैं?गौरी कहती हैं! आप तो सर्वव्यापी हैं। सर्वज्ञाता हैं। आप सभी भक्तों के ह्रदय के भाव जान लेते हैं।
तो क्या, मेरे मन के भाव आप समझ नहीं पा रहे?
महादेव कहते हैं!भक्त के तार ईष्ट के हृदय से जुड़े होते हैं।
भक्त स्वयं ईश्वर से मन ही मन वार्तालाप करते रहते हैं।
इसलिए ईश्वर भक्त के मन तक पहुंच पाते हैं।
अन्यथा ईश्वर में भी इतनी सामर्थ्य नहीं किसी स्त्री के मन के भाव समझ सके।
ऐसे में हम कैसे समझ सकते हैं।
आप हमें बता दीजिए। ऐसा क्या है जो आपके मन को इस तरह विचलित कर रखा है?
ग़ौरी कहतीं हैं! संभोग करने के समय देवताओं के खलल के कारण वीर्य धरती पर गिर गया।
जिससे हम संतान सुख से वंचित रह गए।
जिस स्त्री को संतान नहीं होती,उसका यज्ञ हवन पूजन सब व्यर्थ जाता है। उसे उनका फल भी प्राप्त नहीं होता।
संतान के बिना मेरा संपूर्ण जीवन ही निरर्थक है।।महादेव कहते हैं! आप निराश मत होइए।माघ सुदी त्रयोदसी से सुपुष्य नामक विष्णु व्रत आरंभ होकर वर्ष भर व्रत करने से संतान प्राप्ति जरूर होती है।इस व्रत में कष्ट और खर्च दोनों ही बहुत हैं। किन्तु मैं सभी वस्तुओं की व्यवस्था कर दूंगा।।
गौरी सहर्ष स्वीकार कर प्रसन्न चित होकर व्रत आरंभ करती है।
व्रत आरंभ करते ही ग़ौरी का सारा ध्यान व्रत पूजन में लगने लगा।
वो प्रसन्न रहने लगी।‌एक वर्ष कब व्यतीत हो गया पता ही नहीं चला।
एक दिन महादेव ग़ौरी के रूप गुण का बखान करते हुए, जब संभोग करने की इच्छा से गौरी के नज़दीक आए तो, पुनः देवताओं को चिंता होने लगी।
अगर शक्ति के गर्भ से बालक का जन्म हुआ तो सृष्टि का विनाश निश्चित है।देवताओं ने विचार कर ब्रम्हा जी को महादेव का ध्यान भंग करने के उद्देश्य से भेजा।
यहां महादेव की कुटिया के समीप आकर ब्रम्हा जी, बूढ़े ब्राम्हण का वेश धरकर चिल्लाने लगे।ब्रम्हा जी कहते हैं!‌ कोई है? हमें बहुत प्यास लगी है, पानी पिलाओ। कोई सुन रहा है? बहुत दिनों का भूखा हूं।
कोई भोजन करा दो।
ब्रम्हा जी जब इस तरह बार बार चिल्लाने लगते हैं तो, महादेव का ध्यान भंग हो जाता है।
वो अचानक से गौरी को छोड़ कुटिया से बाहर को भागते हैं।ब्राह्मण वेश धारी ब्रम्हा जी का आतिथ्य सत्कार करते हैं।
बार-बार आग्रह करके ब्रम्हा जी को भोजन करा कर स सम्मान उन्हें विदा करते हैं।
तभी आकाशवाणी होती है।आप ने जो एक वर्ष तक कठिन व्रत किया है, उसका फल आप की शैया पर खेल रहा है।महादेव आकाशवाणी सुनकर ब्रम्हा जी के छलावे को सोचकर मंद-मंद मुस्कुराने लगते हैं।

गौरी अद्भुत तेजमयी बालक को देखकर फूली नहीं समाती।
वह उसे अपने गले से लगाकर दुलारने लगती है।कैलाश पर उत्सव मनाया गया।सभी देवताओं ने आकर बालक को आशीर्वाद दिया। हिमालय ऋषि ने भी स परिवार आकर बालक को आशीर्वाद दिया।वह उस पुत्र का नाम गणेश रखती है।इसी उत्सव में शनिदेव भी आए। क्रमशः

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