“गौरी की ननद”
“अपनी मां को विदा करने के बाद ग़ौरी फिर से उदास रहने लगी। महादेव से बार बार कहने लगी, सबके यहां ननद आती हैं।हमें भी बहुत शौक है,ननद के साथ हंसी मजाक करूं। अपने दिल की बात उनसे करूं।आपने ने कहा था आप की बहन है। आप अपनी बहन को बुला दीजिए। महादेव ने कहा तुमसे ननद का भार सहन नहीं होगा।जो हमारी बहन है तुम उनका भार नहीं उठा पाओगी ।गौरी ने कहा, जैसे सब अपनी ननद का भार उठा लेती हैं , वैसे मैं भी उठा लूंगी। आप बुला दीजिए। फिर हम ननद भाभी देख लेंगीं। महादेव ने कहा तुम जिद कर रही हो इसलिए बुला रहे हैं। जाओ उसके खाने-पीने और रहने की तैयारियां अच्छी तरह से कर लो।गौरी बहुत ही खुश हो गई।उसके पास जितनी भी अच्छी-अच्छी साड़ियां थीं सब निकाल लीं।जितने भी जेवर थे उसके पास उसने सब निकाल कर रख लिए। जितने भी खाने के पकवान बना सकती थी बना लिये। फिर ननद के इंतजार में वह दरवाजे के पास खड़ी हो गयी।महादेव की बहन असावरी देवी दरवाजे के पास जैसे ही आती है, जोर से चिल्लाती हैं।वो हिमालिया पुत्री किधर है? दिखती नहीं है। हमारे आने के डर से पहले ही घर में जाकर छुप गयी।गौरी, झटपट जल से भरा घड़ा लेकर बाहर आती हैं।जैसे ही गौरी अपनी ननद के पांव धोने लगती हैं। घड़ों पर घड़े पानी उनके पांव पर उड़ेलती जाती है। किंतु असावरी देवी के पांव सुखे के सूखे ही रह जाते हैैं। सारा जल उनके पांव की फटी बिवाईयों में समा जाता है ।तब असावरी देवी कहती हैं! तुम्हारे पास मेरे पैर धोने के लिए जल भी नहीं है।इतना कहकर असावरी अपने पैर के बिवाई में गौरी को समा (रख )लेती हैं।महादेव जब आंगन में आते हैं और गौरी को नहीं देखते, तो अपनी बहन असावरी से पूछते हैं।आपकी भाभी कहां है? असावरी कहती हैं हमें नहीं पता। कबसे आकर बैठी हूं परन्तु तुम्हारी पत्नी पता नहीं कहां घूमने गयी है। जब हमारे आने के डर से उसे घर छोड़कर भागना ही था फिर हमें क्यों बुलाया।तभी महादेव की दृष्टि असावरी के पैर के तरफ गयी। उन्होंने देखा गौरी की साड़ी का कुछ भाग,असावरी के पैर की बिवाई से बाहर है।महादेव ने कहा अब बस बहुत हुआ मजाक। अभी अपनी भाभी को पैर के बिवाई से बाहर निकालो। ताकि तुम्हारा आदर सत्कार कर सके।फिर असावरी पैर झटक देती हैं और गौरी नीचे गिर जाती हैं।गौरी भागकर सुगंधित तेल लेकर घर से आती हैं, और असावरी के पैर में लगाने लगती हैं।बोतलों पर बोतलें तेल लगाती जाती हैं, फिर भी उनके पैर में अच्छी तरह नहीं लगा पाती। असावरी अपने पैर बढ़ाती जाती हैंऔर गौरी से कहती हैं।भिखारी की बेटी तेल भी नहीं है घर में, जो मेरे पैरों में लगा सके।चल जाने दे कुछ खाने के लिए घर में है कि नहीं?गौरी झटपट खाना परोसती हैं।जितने भी प्रकार के भोजन थे असावरी सब खा गयी। फिर कहती हैं। कुछ नहीं है तो पानी ही पिला दे।भाई के नाम की हंसी थोड़ी करना है।भूखे पेट ही सो जाती हूं।गौरी ने जल लाकर दे दिया।अब गौरी को भोजन के लिए कुछ नहीं बचता है।महादेव से जाकर कहती हैं, आपने सच ही कहा था, ननद का भार मैं नहीं उठा पाउंगी।महादेव ठठाकर हंस पड़े।कहा एक दिन में ही ननद से मन भर गया। कोई बात नहीं असावरी को मांछ (मछली ) बहुत पसंद है तो रात के भोजन में मांछ बनाना। बहन खुश हो जाएंगी।गौरी उनको दिन में भोजन करते देख अनुमान लगाकर बहुत सारा मांछ लाने के लिए महादेव से कहती हैं ।महादेव भी बहुत सारा मांछ लेकर आते हैं। गौरी पूरे मन से भोजन बनाती है। वह असावरी से कहती है!पहले आप भोजन कर लो। फिर हम लोग करेंगे ।असावरी खाती जाती हैं, खाती जाती है, सारे मांछ खा जाती है। गौरी के लिए कुछ भी नहीं बचता है। गौरी फिर भूखी सो जाती है।दूसरे दिन महादेव से कहती हैं आप अपनी बहन को ससुराल भेज दो, हमसे नहीं होगा। सारी रसोई वह खुद खा जाती है और मैं भूखी रह जाती हूं। ऐसे में कितने दिन तक भूखी रहूंगी।महादेव कहते हैं। ठीक है। उसके लिए साड़ी कपड़ा गहना जो भी रखे हों, निकाल कर लेकर आओ। मैं बहन को विदा करने की तैयारी करता हूं ।गौरी साड़ियां और गहने लेकर आती है ।गौरी बहुत खुश है कि आज तो इतनी सुंदर साड़ी देखकर ननद खुश हो जाएंगी परन्तु असावरी को पहनने को जैसे ही कहती हैं। सब गहने और कपड़े असावरी को छोटी पड़ जाते हैं। गौरी के संदूक की सारी साड़ियां, असावरी अपने बदन पर लपेट लेती हैं। गौरी से कहती है बहुत ही छोटी साड़ियांहैं। भिखारी की बेटी हमारे भाई को भी भिखारी बनाकर छोड़ दिया।और जैसे तैसे समझा बुझाकर महादेव अपनी बहन को विदा करते हैं।क्रमशः
अम्बिका झा ✍️