“श्रावण का माह और हम लोगों का त्यौहार”


इस महीने में सारे देवी देवताओं सहित नाग नागिन की पूजा करते हैं। श्रावण महीने की पंचमी तिथि से, पूजा की शुरुआत होती है।

पूजा से एक दिन पहले ही फूल, बेलपत्र, मैना पात,
जाहि, जूही, तुलसी दल, दूर्वा, पान और दही जमा कर रखते हैं।  रात में नए वस्त्र पहन कर फूल दूर्वा कुसुम फूल एवं हल्दी को पीसकर मां ग़ौरी की प्रतिमा बनाते हैं। फिर कोवर लिखते हैं, नाग-नागिन की आकृति बनाई जाती है।
पातिल पुरहर और मैना पात से कोवर को रात में ही सजा लेते हैं।
श्रावण माह के कृष्ण पक्ष में पंचमी तिथि से शुरू होकर यह पूजा तृतीया को समापन होती है।।


पंचमी की पूजन विधि।    
गौरी आराधना से शुरू होती है, गणेश जी के निर्मित कलश की पूजा होती है, फिर साठिक पूजा में कम से कम 16 प्रकार के प्रसाद होना चाहिए। मिठाई,फल चूड़ा गुड़ पान सुपारी, अनिवार्य है। चनाई नाग की पूजा दुर्वा, सफ़ेद फ़ूल, धानक लावा और गाय के दूध से होती है। फिर गोसाउन विशहरि की पूजा अड़हुल के फूल से करते हैं। फिर पांच बहन विशहरि की पूजा ‌ चंदन, मेहंदी, काजल, गाय के गोबर और सिंदूर से। मैना पात पर विशहरि की आकृति बनाते हैं। धानक लावा, गाय के दूध, जाहि जूही, फूल, और बेलपत्र से उनकी पूजा होती है। 

कथा सुनने से पहले की विन्नी

मैथिली भाषा में,
1
“जहिया स भेल मन मना रे विशहरि खसली शंभू
भरारे कानथी गौरा फोरथी डारी, है दाईं विशहरि राखु नारि,आव त आयल पांचों बहनी, सकल शरीर घामीगेल विन्नी, विन्नी है विश्वकर्मा देवैन देव पितर के देख देवेन, शामिल बाई हरी परेखी विन्नी गुण अति कहत बिशेखी आंतरी आंतरी लागल मोती मुक्ता गाछ पाट के थोपी,चारु कंचन चारु समीका वरना,
से देखी माय है आदित्य भूलना, से देखी माय मालिनी भूलना, सोने बांन्हु बांन्ह करौरा,रूपे बान्हु
गजमोती माला, जै विन्नी त विन्नयी सारी गहा गूही
पलटा दे नारी, अंधा पावे नयन संयुक्ता, कोढ़ी पावे निर्मल काया, जेई विन्नी सुनें चित्ता अन्न धन लक्ष्मी बढ़े वित्ता जै विन्नी के लगावे वसात विष  दोष न आवे पास।।
2
“गोसाउन दान बड़ि,सोहाग बड़ि, सुन्दर बड़ि,आधा साओन, जगत्र गोसाउन, मधस्थ राजाक बेटी, युगे कुमरक बहिन,‌ मधु-मधु महानाग-श्रीनाग-नागश्री
दाइके पांच पुत्र कोखि धरि,नाहर परतारि बैरसी विवाह, मद्र-मनिका धरहर ढ़ाहि,गोसाउन सन भाग लीली सन सोहाग,सुननिहारि के होइनि।

3
“गोसाउन दाईके एक ढ़क छिअनि,पुरिबा-पछबा बसात छिअनि,कोखिलाक सात छिअनि,भमराक लाल छिअनि,मेघडम्बर सन छाती छिअनि, मुक्तावलि पांती छिअनि।।”

4
“बीनी बूनल झारि कोन, बीनी उठल पहिल कोन।
बीनी बूनल झारि कोन, बीनी उठल दोसर कोन।
बीनी बूनल झारि कोन, बीनी उठल तेसर कोन।
बीनी बूनल झारि कोन, बीनी उठल चारिम कोन।
बीनी बूनल झारि कोन, बीनी उठल पांचम कोन।
चारु कोना रूना टूना भेल सम्पूर्णा,गौरा दाईके पांचों बेटियां,भल भाई शंकर हमहीं जिआओल गौरी दाई के बेटी।।”

5
“दीप दिपहरा जाथु धरा।मोती-मानिक भरथु घरा।
नाग बढ़थु, नागिन बढ़थु। पांच बहिन बिसहरा बढ़थु।।
बाल बसंत भैया बढ़थु। डाढ़ी-खोंढ़ी मौसी बढ़थु।
आशावरी पीसी बढ़थु। बासुकी राजा नाग बढ़थु।।”

बासुकिनी माय बढ़थु। खोना-मोना मामा बढ़थु।
राही शब्द लए सुती। कांसा शब्द लए उठी।।

होइत प्रात सोना कटोरा में दूध-भात खाई।
सांझ सुती प्रात उठी, पटोर पहिरि कचोर ओढ़ी।।

ब्रम्हाक देल कोदारि, विष्णुक चांछल बाट।
भाग-भाग रे कीड़ा-मकोड़ा ताही बाट अओताह
ईश्वर महादेव,पहल गरूड़ के ढ़ाठ।
आस्तीक, आस्तीक, गरूड़, गरूड़।।

वाचो बीनी,

पुरैनिक पत्ता झिलमिल लत्ता ताहि चढ़ि बैसली विसहरि माता, हाथ सुपारी खोंइछा पान,
विसहरि करती शुभ कल्याण।।

गौरी पूजन मंत्र,

ऐं गौरी! महामाए, चन्दन डारि तोड़ैत एलहुं,
सोहाग भाग बटैत एलहुं,
फूलक माला अहां लिअ, सोहाग भाग हमरा दिअ,
स्वामी-पुत्र सहित गौर्यै नमः।।”

लोककथा आधारित “संकलन”

अम्बिका झा ✍️

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