आज हमारे छायावादोत्तर काल के प्रथम सोपानासीन राष्ट्रकवि श्री रामधारी सिंह दिनकर जी की अडतालिसवीं पुण्य तिथि पर मैं समस्त साहित्यकारों की ओर से उन्हें विशेषतः स्मरण, नमन व वंदन करते हुए अपने हाँथों से श्रद्धासुमन रूपी पुष्पांजलि समर्पित करती हूँ  -:
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रामधारी सिंह ‘दिनकर’ (23 सितम्‍बर 1908- 24 अप्रैल 1974) हिन्दी के एक प्रमुख लेखक, कवि व निबन्धकार थे। वे आधुनिक युग के श्रेष्ठ वीर रस के कवि के रूप में स्थापित हैं।
दिनकर’ स्वतन्त्रता पूर्व एक विद्रोही कवि के रूप में स्थापित हुए और स्वतन्त्रता के बाद ‘राष्ट्रकवि’ के नाम से जाने गये। वे छायावादोत्तर कवियों की पहली पीढ़ी के कवि थे। एक ओर उनकी कविताओ में ओज, विद्रोह, आक्रोश और क्रान्ति की पुकार है तो दूसरी ओर कोमल श्रृंगारिक भावनाओं की अभिव्यक्ति है। इन्हीं दो प्रवृत्तियों का चरम उत्कर्ष हमें उनकी कुरुक्षेत्र और उर्वशी नामक कृतियों में मिलता है। आइए हम इस पृष्ठ के माध्यम से उनका संक्षिप्त परिचय भी याद कर लेते हैं। -:
जन्म  -: 23 सितम्बर 1908 सिमरिया घाट बेगूसराय जिला, बिहार, भारत 
मृत्यु -:24 अप्रैल 1974  (उम्र 65) मद्रास, तमिलनाडु, भारत
व्यवसाय -: कवि, लेखक अवधि/काल आधुनिक काल विधा गद्य और पद्य विषय कविता, खंडकाव्य, निबंध, समीक्षा साहित्यिक, आन्दोलन राष्ट्रवाद, प्रगतिवाद।
उल्लेखनीय कार्य -: कुरुक्षेत्र, रश्मिरथी, उर्वशी, हुंकार, संस्कृति के चार अध्याय, परशुराम की प्रतीक्षा, हाहाकार।
उल्लेखनीय सम्मान -: 
1959 -: साहित्य अकादमी पुरस्कार।
1959 -: पद्मभूषण।
1972 -: ज्ञानपीठ पुरस्कार।
1999 -: भारत सरकार ने रामधारी सिंह दिनकर की स्मृति में डाक टिकट जारी किया।
धन्यवाद!
राम राम जय श्रीराम!
लेखन एवं संकलन- द्वारा- सुषमा श्रीवास्तव, 
रुद्रपुर, उत्तराखंड।
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