शून्य हूं तो उसकी भी कीमत कम नहीं
असली पहचान तो मेरी जताने कोई आता नहीं
आता जाता मेरे साथ कोई भी हमनवा
अपनी दास्तां हर कोई बयां करने आता नहीं
हुआ कुछ यूं हाल मेरे दिल का या खुदा
हर कोई अफसाना सुनाता , समझता नहीं
रखता नहीं सहेज कर कुछ पल
ज़हन से मेरे अब यह ख्याल जाता नहीं
बनाने कई कई अफसाने जो मै निकला
हो गया सब से दूर ,पास कोई आता नहीं
रंग रोगन नहीं था घर में मेरे , इस लिए
उसके अंदर का सुख देखने कोई आता नहीं
जलती आग में झोंक दिया खुद को मैने
मेरे अरमान बर्फ़ से पिघलाने कोई आता नहीं
मिट कर भी न मीटे अफसाने इश्क के
शून्य हूं तो दस बनाने तू आता नहीं
© रेणु सिंह ” राधे ” ✍️
कोटा राजस्थान